*कौन जाने जिंदगी यह ,जीत है या हार है (गीतिका)*
कौन जाने जिंदगी यह ,जीत है या हार है (गीतिका)
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(1)
कौन जाने जिंदगी यह ,जीत है या हार है
कौन जाने यह सजा है, या मिला उपहार है
(2)
जिंदगी सौ साल की ,लंबी कभी छोटी लगी
फूल-सी हलकी कभी,लगती कभी यह भार है
(3)
रोग तन को लग गया, तो सब मजा जाता रहा
लग रहा जीवन कि जैसे,एक कारागार है
(4)
चल नहीं पाया पता, कुछ आत्म-तत्व विशेष का
कुछ किताबों से कहूॅं तो बात सब बेकार है
(5)
जिंदगी का अर्थ बस इतना समझ में आ सका
छोड़ना होटल के कमरे की तरह संसार है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उ.प्र.)
मोबाइल 999761 5451