कौन करता है आजकल जज्बाती इश्क,
कौन करता है आजकल जज्बाती इश्क,
बनकर रहा गया है बस अनुपाती इश्क !
सुध बुध खो जाती चैन सुकून मिट जाता,
जान पर बना देता है ये करामाती इश्क !
मुहब्बत के नाम पर दगा देना आम हुआ,
आजकल हो गया बड़ा खुराफाती इश्क !
जिस्म से जिस्म तक सिमटकर रह गया है,
देखने को मिलता है बस मुलाकाती इश्क !
जात धर्म के नाम पर लड़ते है कुछ लोग,
कैसा मज़हबी बन गया है उत्पाती इश्क !
शहरो की आब-ओ-हवा में बदचलन हुआ,
कितना पाक सच्चा होता था देहाती इश्क !
बात बात में देने लगे है मुहब्बत की दुहाई,
मानो खैरात में बटने लगा है खैराती इश्क !
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डी के निवातिया