कौतूहल एवं जिज्ञासा
कौतूहल से तात्पर्य किसी विषय अथवा व्यक्ति विशेष के प्रति जानकारी एकत्र करने के इच्छा होना।
इसी प्रकार जिज्ञासा का शाब्दिक अर्थ भी समान है।
परंतु उनके भावार्थ भिन्न हैं।
कौतूहल में किसी जानकारी को प्राप्त करने की इच्छा में सकारात्मक एवं नकारात्मक भाव का समावेश हो सकता है, जबकि जिज्ञासा में सदैव सकारात्मक भाव विद्यमान रहता है।
कौतूहल से प्राप्त जानकारी की सत्यता में व्यक्तिगत विश्लेषण का अभाव होता है एवं समूह मानसिकता की अवधारणाओं को सत्य मान लिया जाता है।
जबकि जिज्ञासा में प्राप्त जानकारी की वैधता का विश्लेषण जानकारी के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों को दृष्टिगत रखते हुए व्यक्तिगत प्रज्ञाशक्ति के आधार पर किया जाकर उसकी मान्यता को स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है।
जिज्ञासा में अन्वेषण भाव निहित होता है, जिसमें पूर्व प्रपादित एवं प्रचालित समूह अवधारणाओं की सत्यता को तर्क की कसौटी पर परखा जाकर व्यक्तिगत धारणा का निर्माण होता है।
यह सत्य है कि जिज्ञासा ज्ञान की जननी है।
जिसमें प्राप्त जानकारी के सतत् मंथन के माध्यम से सत्य की खोज की जाती है।
जबकि कौतूहल में दृष्टि भ्रम एवं माया द्वारा निर्मित परिदृश्य को सत्य मान लिया जाता है।
कौतूहल में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा में अधिकांशतः समूह मानसिकता का समावेश होकर अंधविश्वास की उत्पत्ति होती है , एवं तर्क की कसौटी पर सत्यता की परख की कमी पायी जाती है ।
वर्तमान के संदर्भ में यह आवश्यक है किसी विषय अथवा व्यक्ति विशेष की जानकारी एकत्र करने में हम कौतूहल के स्थान पर जिज्ञासा का भाव अधिक रखें एवं प्राप्त जानकारी की सत्यता का विश्लेषण तर्क कसौटी पर करने के पश्चात ही व्यक्तिगत धारणा का निर्माण करें।
अन्यथा हम सत्य की खोज से सदैव वंचित रहेंगे।