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2 Aug 2024 · 1 min read

कौड़ी के भाव ले के दुआ

कौड़ी के भाव ले के दुआ राहगीर से
करते हैं कारोबार हम अक्सर फ़कीर से

कुछ सोचकर फसील उठाई नहीं अभी
फिलहाल घर को बांट लिया है लकीर से

पाकर उरूज़, वक्त कभी भूलते नहीं
गिरते नहीं है हम कभी अपने ज़मीर से

अपनों ने आज फर्ज निभाया है इस तरह
घायल हुए हैं हम भी मुहब्बत के तीर से

होती नहीं नदी की समंदर से दोस्ती
मालूम है गरीब का रिश्ता अमीर से

सर में दिमाग हाथ में रखते हैं हम कलम
अंदाजा मत लगाओ, हमारा शरीर से
————–
फसील=दीवार, उरूज़=उत्थान, जमीर=अंतःकरण

1 Like · 84 Views
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