कोहिनूर फिसल गए,तेरे इन मदहोश बाहों में
ग़ज़ल – कोहिनूर फिसल गए,तेरे इन मदहोश बाहों में
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फूलों की बहार मोहतरमा,दिल की दरिया में।
तिरछी नज़र होठों की हसीं प्रेम की झरिया में।।
बातें यूं बयां नी करती, मोहब्बत की गलियों में।
कब तक आऊं सनम,बता दो इन सहेलियों में।।
यादें जो छेड़ रही हो , संगीत के इस घरानों में।
कट रहा यूँ ही सफ़र , जीवन के इस तरानों में ।।
दिल मेरा दिल जाना ,तेरे प्यार की तिजौरी में।
छिपा वो प्रेम खजाना,करती जिसकी तु चोरी में।।
हुस्न की महफ़िल को,चला दो इस राहों में।
किस्मत की अप्सरा,आ जाओ अब बाहों में।।
पूरे समय से छाए रहे,तुम्हारी रसीली निगाहों में।
कोहिनूर फिसल गए,तेरे इन मदहोश बाहों में।।
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रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभवना, बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822