कोहरे के दिन
सूरज तो उत्तरायण -दक्षिणायन करता रहता है
घूमती रहती है घड़ी की सुई ,हर पल चहुं ओर ।
शीत ओस कुहासा कोहरा कब तक रहेगा यहां
दोपहर हो गया है, लगता है अभी हुआ है भोर ।
चिड़ियां भी ठहर गया है, अपने घोंसले में आज
किया नहीं है उसने अभी तक एक बार भी शोर ।
अलाव जलाएं बैठे हैं, चौक चौराहे पर कई लोग
रात तो बीत गई, कब तक होगा उजाला और भोर ।
ठंड और कनकनी से दुबक गए हैं घरों में लोग
ऊष्मा – गर्मी को छिपाकर बैठा है कोई चितचोर ।
रुक गया है कोई ,कोई ठहरा तो कोई छिप गया है
चलती है केवल घड़ी, समय बताने के लिए हर ओर।
रफ्तार भी देख लिया है, शायद खबरदार का बोर्ड
‘धीरे चले आगे बढ़ें’, वरना हो सकती है घटना घनघोर ।
न आगे दिखता है, न पीछे दिखता है अभी किसी को
संभल कर चलो सड़क पर, कोहरा घना है पुरजोर ।
******************************************@ मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर