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18 Jan 2024 · 1 min read

कोहरा

उठने का साहस तो करता हूं मैं
भेद नहीं पाता हूं कोहरे का पहरा ।

कोहरे ने कैद कर लिया है मुझे
सर्दी का सागर है कितना गहरा ।

लिहाफ छोड़ नहीं पाया हूं अबतक
‘चाय तैयार है’ सुनकर भी हूं बहरा ।

जो गर्म कर दे अपने आग से मुझे
ढूंढता हूं वह आदमी ,मुसाफिर जो ठहरा ।

आपसे मिलने तो जाना है आज मुझे
आपने बुलाया था, कोहरे का है नखरा ।

बेशर्म होकर पसरा है अबतक कोहरा यहां
शीत – ठंड है, कोहरा हो रहा और भी गहरा ।

कोहरा अभी रहेगा और भी हरा- हरा
सूरज ने ही छिपा लिया है अपना चेहरा ।
**********************************
@रचना- घनश्याम पोद्दार
मुंगेर

Language: Hindi
188 Views
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