Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 May 2023 · 4 min read

कोशी के वटवृक्ष

यह किताब मैंने 2022 के पूर्वाध में मंगाई थी लेकिन एक चैप्टर बाद यह रह गयी थी तो मैने सोचा कि साल के शुरुआत में ही इसको पढ़ लिया जाय। यह कहानी सुपौल जिले के उन बुजुर्गों की है जिनका 2008 के कोशी के बाढ़ में सब कुछ छीन गया। पुष्यमित्र जी लिखित यह किताब काफी रिसर्च और आँकड़ो पर आधारित है।

2008 के बाढ़ के बाद सुपौल जिले के इन बुजुर्गों का घर बार सब कुछ छीन गया यहाँ तक कि रिश्तों की गर्माहट को भी कोशी के बाढ़ में बहकर आये रेतों ने पूरी तरह ढँक दिया था। जब चारों ओर अँधेरा हो तो चाहे उम्र कोई भी हो लोग उजाला ढूँढने का प्रयास ही करते है यही मानव जीवन है भले कोशी ने 1954 के बाद 2008 में कोशी डायन का रूप लेकर सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, अररिया में जिस तरह की विभीषिका देखी वह दशकों में एक बार देखने को मिलती है।

यह विभीषिका इतनी बड़ी थी कि तत्कालीन केंद्र की सरकार को इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करना पड़ा। राष्ट्रीय आपदा घोषित करने से ऐसी विभीषिकाओं में सब कुछ खो चुके लोगों को कितना फायदा पहुँचता है यह तो समय ही बताता है लेकिन ऐसी आपदाओं से लोग खुद ही किसी तरह निकलते है चाहे तमिलनाडु का सुनामी झेल चुके लोग या उत्तराखंड की त्रासदी झेल चुके लोग हो आखिरकार उन्हें खुद ही अपने लिए रास्ता निकालना होता है ऐसी त्रासदियों से बाहर निकलने का। सरकारी योजना कुछ जगह पहुंचती तो है लेकिन अधिकतर जगह यह भ्रस्टाचार की भेंट चढ़ती हुई दिखाई पड़ती है। सुपौल में लोगों ने हेल्पेज इंडिया की मदद से बुजुर्गो ने न सिर्फ अपने आप को खड़ा किया बल्कि ऐसे कई सामाजिक बुराइयों से बाहर निकलकर समाज में एक उदाहरण पेश किया जो यह साबित करता है कि बुजुर्ग चाहे किसी उम्र के हो उन्हें अगर थोड़ी सी भी सहायता मिले तो वे पहाड़ भी चढ़ सकते है। यही सुपौल जिले के इन बुजुर्गो ने कर दिखाया। जब आदमी के पास खोने को कुछ नही रहता है तब वे ज्यादा जोश के साथ अपनी ही गलतियों के साथ सीखते हुए आगे बढ़ते है यही इन बुजुर्गो ने किया। जब इन्हें लगा कि अब इनका साथ सबने छोड़ दिया है यहाँ तक कि उनके परिवार वाले भी इन्हें बोझ समझने लगे तो इसी अंधेरे में हेल्पेज इंडिया इनको एक तरह से रोशनी दिखाने की कोशिश करती है। लेकिन जब आप ऐसे सामाजिक कार्य को हाथ मे लेते है यह हमेशा से होता आया है कि समाज के वे लोग जिनके स्वार्थो पर ऐसे कामों से कुठाराघात होता है वे आपका हर संभव विरोध करते है। भले ही लेखक इस किताब के माध्यम से कुछ चीजों पर पर्देदारी की हो लेकिन मैं भी संयोगवश उसी कोशी की विभीषिका देखने वालों में से हूँ जो हर साल इस मंजर को देखता है चाहे कम स्तर पर हो या बृहद स्तर पर।

इस कहानी में हर किरदार अलग है अलग पृष्ठभूमि से आता है अलग अलग जाति समुदाय या अलग अलग धर्मो के लोग एक मंच पर आकर इन बुजुर्गो ने न सिर्फ अपनी जमीन तैयार की बल्कि इस इलाके के युवाओं में जो दिल्ली पंजाब जाकर काम करने की रफ्तार थी उसपर भी रोक लगाया। इससे मजदूरों का पलायन रुका, साथ में परिवार के लोगों ने इन बुजुर्गों को एक एसेट की तरह देखना शुरू किया। और बुजुर्गों ने भी इतना होने के बाद भी अपने बच्चों को वापस मुख्यधारा में लाने का हर संभव प्रयास किया चाहे वह बुजुर्गों का मान सम्मान करना हो या बुजुर्गों द्वारा अपने बच्चों के लिए रोजगार के द्वार खोलना, दोनों तरफ से एक दूसरे को समझने की भरपूर कोशिश हुई और आज इस ग्राम सहायता समूह ने अपना एक रजिस्टर्ड संस्था बनाया है जिसमें सुपौल, मधुबनी और दरभंगा जिले के लगभग 6000 बुजुर्ग इससे जुड़कर 6000 परिवारों की जिंदगी में बदलाव लाने का हरसंभव प्रयास हो रहा है। आज यह ग्रुप इतना सक्षम है कि किसी भी तरह की प्राकृतिक विपत्ति आने पर ये लोग अपना कर्ज चुकाने के नाम पर अनाज , पैसा और पशुओं के लिए भी चारे का इंतजाम करते है। क्योंकि इन्हें लगता है जब इनपर विपत्ति आयी थी तो देशभर के लोगों ने इनकी मदद की थी और यह इनपर एक कर्ज है जो उतार तो नही सकते है लेकिन उसके हिस्से को कम अवश्य करते है यही वजह है जब उत्तराखंड में त्रासदी आयी थी तो इस ग्रुप ने 5 लाख 40 हजार रुपैया यह कहकर दिया कि इसे दान ना समझा जाए यह उनपर कर्ज है जो वे इस मदद के साथ इसको कम करना चाहते है। ऐसा ही जब 2019 में मधुबनी में बाढ़ आई थी तो इस ग्रुप ने 2500 परिवारों के लिए सूखा राशन और 25 क्विंटल पशुओं के लिए चारा भी भेजा था। आप कल्पना कीजिये यह ग्रुप ऐसे उम्र के लोगों की है जिसे उम्र के इस पड़ाव में रिटायर्ड मान लिया जाता है और वे आज 6000 परिवारों के लिए एक मिसाल बन रहे है जो उम्र के आखिरी पड़ाव में जीवन जीने के तरीके को समझने का प्रयास कर रहे है साथ में कई लोगों के जीवन मे बदलाव भी ला रहे है। लेखक Pushya Mitra जी का धन्यवाद इतनी बढ़िया और प्रेरणादायक कहानी समाज के बीच में लाने के लिए।

धन्यवाद।
©✍️ शशि धर कुमार

1 Like · 292 Views
Books from Shashi Dhar Kumar
View all

You may also like these posts

वर्तमान ही वर्धमान है
वर्तमान ही वर्धमान है
पूर्वार्थ
विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी जीवन
Santosh kumar Miri
तुम अपने माता से,
तुम अपने माता से,
Bindesh kumar jha
दुर्गावती घर की
दुर्गावती घर की
पं अंजू पांडेय अश्रु
23 Be Blissful
23 Be Blissful
Santosh Khanna (world record holder)
"खुश होने के लिए"
Dr. Kishan tandon kranti
डोर रिश्तों की
डोर रिश्तों की
Dr fauzia Naseem shad
बढ़ी हैं दूरियाँ दिल की भले हम पास बैठे हों।
बढ़ी हैं दूरियाँ दिल की भले हम पास बैठे हों।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*करते हैं पर्यावरण, कछुए हर क्षण साफ (कुंडलिया)*
*करते हैं पर्यावरण, कछुए हर क्षण साफ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
वीर नारायण
वीर नारायण
Dijendra kurrey
जिज्ञासा
जिज्ञासा
Neeraj Agarwal
शायरी
शायरी
गुमनाम 'बाबा'
दुनिया वालो आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालो आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।
श्रीकृष्ण शुक्ल
सिला
सिला
Deepesh Dwivedi
*Perils of Poverty and a Girl child*
*Perils of Poverty and a Girl child*
Poonam Matia
प्रश्न 1 – संस्कृत दिवस हर साल किस दिन मनाया जाता है?
प्रश्न 1 – संस्कृत दिवस हर साल किस दिन मनाया जाता है?
Aneesh
यमराज का एकांतवास
यमराज का एकांतवास
Sudhir srivastava
लोग कहते ही दो दिन की है ,
लोग कहते ही दो दिन की है ,
Sumer sinh
हमें एक-दूसरे को परस्पर समझना होगा,
हमें एक-दूसरे को परस्पर समझना होगा,
Ajit Kumar "Karn"
- माता पिता न करे अपनी औलादो में भेदभाव -
- माता पिता न करे अपनी औलादो में भेदभाव -
bharat gehlot
इजोत
इजोत
श्रीहर्ष आचार्य
खुल गया मैं आज सबके सामने
खुल गया मैं आज सबके सामने
Nazir Nazar
बालि हनुमान मलयुद्ध
बालि हनुमान मलयुद्ध
Anil chobisa
आस्था राम पर
आस्था राम पर
इंजी. संजय श्रीवास्तव
एक अजन्मी पुकार
एक अजन्मी पुकार
R D Jangra
মা মা বলে তোমায় ডেকে ( মনসা সঙ্গীত )
মা মা বলে তোমায় ডেকে ( মনসা সঙ্গীত )
Arghyadeep Chakraborty
आजा आजा रे कारी बदरिया
आजा आजा रे कारी बदरिया
Indu Singh
शीर्षक – कुछ भी
शीर्षक – कुछ भी
Sonam Puneet Dubey
अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
अपने-अपने काम का, पीट रहे सब ढोल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
जितना अधिक आप अपने जीवन की प्रशंसा करते हैं और जश्न मनाते है
जितना अधिक आप अपने जीवन की प्रशंसा करते हैं और जश्न मनाते है
ललकार भारद्वाज
Loading...