” कोरोना “
” कोरोना ”
2020 के शुरु में हम सबने मीडिया से ये सुना कि कोरोना नाम का कोई वायरस आया है, जो पूरे विश्व में फैल गया है। कोरोना का उदगम स्थल चीन को बताया गया। हर तरफ़ तबाही का मंजर दिख रहा था। त्राहि त्राहि की पुकार हर तरफ सुनाई दे रही थी। उस मंजर को याद करके आज भी दिल सहम जाता है। मैंने अपनी पुस्तक सात्विक धारा 2022 की एक कविता में इस कोरोना को वायरस ना कहकर प्रकृति का गुस्सा नाम दिया है :
” प्रकृति का गुस्सा कोरोना ”
बच्चे, वृद्ध, नौजवान बैठे थे
नव वर्ष 2020 आगमन के इंतजार में
दस्तक कोरोना की मचा गई तबाही
बुरी तरह हिला मानव प्रकृति की मार में,
दिखे वहीं सिर्फ मार्मिक हाहाकार
सूना मंजर पसरा नगर नगर में
चपेट में आए गांव और ढाणी भी
मूक ताला लगा देश-विदेश भ्रमण में ,
सबके कदम अनायास ही रुक गए
चाह कर भी बाहर निकल ना पाएं
भय का वातावरण सबको हुआ महसूस
खुली हवा में सांस भी ना ले पाएं,
किसी ने कहा दुर्लभ वायरस इसे
कोई इसे संक्रमण का खतरा बताए
मीनू ने नाम दिया इसे प्रकृति की मार
जो आज हम सब को भुगतनी पड़ जाए,
नहीं रखा ध्यान हमने प्रकृति का
तभी तो आज घुटना पड़ गया
वायरस संक्रमण तो बस बहाना है
गुस्सा प्रकृति का “कोरोना” जिद्द पर अड़ गया।
इस भयंकर कोरोना वायरस ने भारत को भी अपने शिकंजे में कस लिया था। सरकार और समाज सेवी सब अपने अपने स्तर से हर आवश्यक वस्तु की आपूर्ति जरूरतमंदों को उपलब्ध करवा रहे थे। इतने प्रयासों के बावजूद भी गरीब भूख से बिलख रहा था।
उन विकट परिस्थितियों में पुलिस वाले, मेडिकल विभाग, बैंक कर्मी, सफाई कर्मी, दमकल कर्मी, जलदाय विभाग, बिजली विभाग, समाज सेवी इत्यादि अपनी जान की परवाह न करते हुए लोगों को आवश्यक सेवाएं उपलब्ध करवा रहे थे।
मैं खुद बैंक कर्मी हूं, तो पूरे कोरोना काल में अपनी ड्यूटी निभाई थी। शुरू शुरू में तो लोग डरे हुए घूमते थे, लेकिन बाद में उन्होंने भी कोरोना का मजाक बना लिया था। बैंक में हम ग्राहक को मास्क लगाने, दूरी बनाए रखने, हाथों को सेनेटाइज करने इत्यादि का निवेदन करते, लेकिन कोई मानने को ही तैयार नहीं था।
जब कोरोना अपने पीक पर आया तब सभी वर्ग के लोगों को अपनी चपेट में ले लिया तथा सबको चारदीवारी में घुट घुट कर रहने को मजबूर कर दिया। कोरोना ने अमीर, गरीब, राजा, रंक, भिखारी, व्यापारी, नौकरी पेशा, निम्न वर्ग, मोटा, पतला, लंबा, नाटा, काला, सफेद सबको एक ही नजर से देखकर लपेटना चालू कर दिया।
व्यस्त आदमी जो हमेशा कहता घूमता था कि मेरे पास मरने का ही समय नहीं है, आज वो भगवान से जीने की दुआ कर रहा था तथा घर में कैद होकर टाईम पास करने के साधन खोज रहा था। प्रकृति ने भी हम मानव के साथ खूब मजाक किया। जो दुख हमने पेड़ काटकर, प्रदूषण फैलाकर प्रकृति को दिए, उन सबका बदला उसने ले लिया।
हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमे मूंह पास मास्क लगाकर कृत्रिम हवा के लिए दर दर भटकना पड़ेगा। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारी फिजाओं में जहर फैला हुआ है। आवश्यक सेवाओं वाले कर्मचारियों को ड्यूटी के बाद घर जाकर परिवार से अलग रहना पड़ता था। कड़ी परीक्षा के दौर से मानव उस समय गुजरा था।
मैंने अपनी कविता में भी लिखा है कि इसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं जाकर मानव ही है। हमने ही तो धरती माता का सीना छलनी किया है, हम ही तो ध्वनि, वायु, जल, शोर प्रदूषण फैलाते हैं, पेड़ों को भी हम ही काटते हैं, हमने ही सारे वातावरण को नशे के धुएं से ज़हरीला किया है, इन सबकी सजा प्रकृति ने कोरोना के रूप में हमको दे दी। सब और सिर्फ भय का माहौल बना हुआ था। अपने प्यारे अनेकों छूटते चले गए।
इन सबके पीछे कई लोग ऐसे भी थे जिनको ना कोरोना का डर था, ना ही कोई चिंता। ऐसे लोग कोई मास्क चुरा रहा था, कोई डैकेती कर रहा था, कोई शराब पी रहा था, कोई नन्ही बच्चियों के साथ दरिंदगी कर रहा था, कोई फायदा उठाकर 2 रुपए की चीज 10 रुपए में बेच रहा था। कोई संक्रमित होकर दूसरों पर थूक कर भाग रहा था तो कोई दूसरों में संक्रमण फ़ैलाने का नित नए प्रयोग कर रहा था।
सही में इंसान कभी नहीं सुधर सकता और न ही कभी उसकी भूख पूरी होती। कोई नकली सेनेटाइजर बनाकर बेच रहा था। ऐसे लोगों को मौत की भी परवाह नहीं थी। शादी, ब्याह, जलसा, खुशी और गम का हर उत्सव बंद हो गया था। सच में प्रकृति का कलेजा फटने को हो रहा था तथा वह चिल्ला रही थी कि ही नर ! क्यों मेरा दोहन किया।
आज की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास समय नहीं था। कोई पैसा कमाने की होड़ में व्यस्त था तो कोई पेट पालने के लिए मजबूरन अपने परिवार से दूर था। कोरोना ने सबको फ़्री कर दिया कि जाओ अब तुम्हारे पास कोई काम नहीं है। आराम से अपने परिवार का साथ समय बिताओ।
शरीर से कमजोर आदमी जल्दी कोरोना की चपेट में आ रहा था तथा स्वस्थ आदमी कोरोना को टक्कर दे रहा था। हम व्यस्त जिंदगी में व्यायाम और कसरत को भूल गए थे, लेकिन कोरोना ने हमें याद दिला था कि शुद्ध खाना पीना और शारीरिक व्यायाम हमारे शरीर के लिए कितना आवश्यक है।
कोरोना से मौत होने के बाद डॉक्टर प्लास्टिक में पैक होकर लाश का अंतिम संस्कार कर देते थे, परिवार को तो अंतिम दर्शन की भी अनुमति नहीं थी। शायद ही किसी ने प्रकृति के इस भयंकर तांडव के बारे में सोचा होगा। कोरोना लॉक डाउन की अवधि के बारे में सोचते हैं तब आज भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं। हे प्रभु ! ऐसा प्रकोप दोबारा कभी मत दिखाना।