कोरोना
“कोरोना ” काव्य प्रतियोगिता
ग़ज़ल ———
आज घर में कै़द हम ये सोचते हैं।
रौनके़ क्यों कर हैं कम ये सोचते हैं।।
इसमें है कुदरत की कोई बेहतरी ही,
थम गए जो हमक़दम ये सोचते हैं।।
हाल कैसा हो गया जग का ही सारे,
आँख है सबकी ही नम ये सोचते हैं।।
आदमी मगरूर था ताक़त पे अपनी,
हाय टूटा अब भरम ये सोचते हैं।।
दर्द सालों तक रहेगा याद सबको,
कैसे भूलेंगे अलम ये सोचते हैं।।
एक दिन हट जाएगी ग़म की ये बदली,
होगा उसका भी करम ये सोचते हैं।।
देख तांडव मौत का यूँ हर तरफ ही,
क्या लिखे ममता क़लम ये सोचते हैं।।
डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद