कोरोना
कैसा ये सन्नाटा पसरा है यहाँ
कोई दहशत गर्द गुजरा है यहाँ
आदमी को आदमी से डर लगे
जिंदगी को आज खतरा है यहाँ
शह्’र हो या गाँव फैली ख़ामुशी
हो गया पत्थर का सहरा है यहाँ
फूल तन्हा रह गया है बाग में
कोई तितली है न भँवरा है यहाँ
अपने ही अब अजनबी से हो गए
इक नया मंजर ये उभरा है यहाँ