कोरोना वायरस का भूत ( हास्य -व्यंग्य रचना )
हर आहट पर डरे-डरे से,
रहते है सदा मरे -मरे से ।
साँसे हैं अटकी हुई सी ,
नब्ज़े है रुकी रुकी सी ।
दिल में बेचैनी हर पल ,
एक साया सा दिखे हर पल ।
खौफ का ऐसा आलम है छाया ,
दिखती है बस वायरस की छाया ।
आमोद-प्रमोद के साधन बंद ,
लोगों से मिलना जुलना भी बंद ।
हम तो अपने घर ही नज़रबंद हो गए ,
दिमाग से अब सारे विचार भी खो गए ।
मामूली खाँसने -छिकने से भी डर जाएँ ,
अब बताओ मित्रों ! हम जाएँ तो कहाँ जाए ?
क्योंकि अब हर आहट पर दिल यही कहे ,
कहीं यह वो तो नहीं ! कहीं ये वो तो नहीं !
कोरोना वायरस का भूत !!