Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jul 2021 · 4 min read

कोरोना रिपोर्ट

निर्मला की तबियत पिछले चार दिनों से कुछ ठीक नहीं थी। खाँसी आ रही थी और हल्का बुखार भी रहता था। लॉक डाउन की वजह से घर से बाहर भी निकलना मुश्किल था। पर मन बदलने के लिए रोज सुबह वॉक के लिए निकल जाती थी। आज भी वॉक पर जाने का टाइम हो गया तो पड़ोस की नीना ने आवाज दी- श्रेय बेटा, दादी को भेज दो। निर्मला ने आवाज सुन ली थी, वो नीचे आ गई।
उसने श्रेय से कहलवा दिया कि दादी आज नहीं जाएंगी। वो अपने कमरे में आकर लेट गई। बड़ा बेटा जब ऑफिस के लिए जा रहा था तो कमरे में आया – माँ, आपने नाश्ता नहीं किया। श्रेय बता रहा था कि आपकी तबियत सही नही है क्या हुआ है? उसने कहा – बस थोड़ी सी कमजोरी है बेटा, और कुछ नहीं। ख्याल रखने की हिदायत देकर वो चला गया। दोपहर को छोटे बेटे का फ़ोन आया उसने कहा – माँ कब से समझा रहा हूँ आपको जाँच करवा लो, कहीं कोरोना हुआ तो, वो कहते- कहते रुक गया। निर्मला परेशान होते हुए बोली- मुझे नही होगा कोरोना- वोरोना। बस बुढ़ापे का असर है और कुछ नही। खैर थोड़ा ना-नुकर के बाद वो मान गई। उसने बहू को साथ चलने के लिए कहा पर उसने साफ मना कर दिया। नीना के घर भी गई, हरदम साथ जाने के लिए तैयार रहने वाली नीना ने भी एक साथ कई सारे झूठे बहाने बनाकर अपनी मजबूरी जाहिर की। निर्मला ने अपनी दोपहर की दवाइयां ली और फिर थोड़ी देर बाद वो तैयार होकर हॉस्पिटल की तरफ चल पड़ी।
हॉस्पिटल में बहुत भीड़ थी, उसे लम्बे समय तक इंतजार करना पड़ा। यहाँ तो अच्छा खासा आदमी मरीज़ बन जाए ,वो बड़बड़ाई। अपनी बारी आने पर उसने भी टेस्ट कराया, डॉक्टर ने बताया कि रिपोर्ट कल मिलेगी। वो घर की तरफ चल पड़ी। रास्ते में उसने श्रेय के लिए आम खरीदे और फिर उसे याद आया कि सरला से वो काफी दिन से नहीं मिली थी। सरला पड़ोस में ही रहती थी पर उसका घर थोड़ा दूर पड़ता था इसलिए जल्दी आना-जाना नही हो पाता था। सरला के घर पहुंचकर उसने डोरबेल बजाई पर कोई नही आया। उसने आवाज देकर भी बुलाया पर कोई जवाब नही आया। थोड़ी देर बाद उसे दरवाजे को अंदर से बंद करने की आवाज आई। वो हैरान थी। थोड़ी देर बाद वो घर वापस लौट आई। घर पर भी सन्नाटा पसरा हुआ था। शायद श्रेय सो गया होगा, उसने मन ही मन सोचा। नीचे अपने कमरे में आकर उसने दवाइयां रखी और फिर सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते आवाज लगाई- श्रेय देखो दादी क्या लाई है आपके लिए, आपके फेवरेट मैंगोज। ऊपर पहुंची तो देखा कि बहू का कमरा बन्द था और अंदर से श्रेय की रोने की आवाज आ रही थी बहु उसे डाँटते हुए कहा रही थी कि दादी के पास जाने की कोई जरूरत नही है, उन्हें कोरोना हो गया है। निर्मला हतप्रभ सी वही खड़ी रह गई। उसने किचन में जाकर आमों को धोया और फिर फ्रिज में रख दिये। श्रेय के बिना वो एक भी आम ना खा सकी। बेटा आफिस से लौट आया था। बिना कोई हालचाल पूछे उसने कहा दिया, माँ आप ऊपर मत आइएगा आपका खाना नीचे ले आऊंगा।
निर्मला ने कोई जवाब नही दिया कहती भी क्या। छोटे बेटे का भी फ़ोन आया, दूर से क्या कर सकता था वो । बस इतना कहा कि माँ कल रिपोर्ट आने के बाद मुझे तुरन्त फ़ोन करना, मैं आ जाऊंगा। निर्मला ने ठीक है कहकर फोन रख दिया। उसने रात को खाना भी नही खाया। इतना तो वो बीमारी से कमजोर नहीं पड़ी थी, लोगो का ये व्यवहार उसे और भी कमजोर बना रहा था। रात भर वो ना जाने क्या- क्या सोचती रही। सुबह देर से नींद खुली। उसने झाँक कर देखा श्रेय ऑनलाइन क्लास ले रहा था। वह उठकर बालकनी पर आ गई। हमेशा उसके गुण गाने वाली पड़ोसन की बहू भी अपनी बालकनी पर चाय का लुत्फ ले रही थी उसे देखते ही वो तुरंत अंदर चली गई और फिर दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द कर दी। कोरोना टेस्ट की भनक पूरे मोहल्ले को लग चुकी थी। निर्मला हँस पड़ी।
अंदर से वो खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी। आज नाश्ते के लिए भी नही पूछा गया था। श्रेय क्लास खत्म होने के बाद चुपचाप उन्हें नाश्ते की प्लेट दे आया – मम्मा अभी नहा रही है आप खा लीजिए। उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े। रिपोर्ट के बारे में सोचकर बहुत बेचैनी हो रही थी। उसने नाश्ता किया और फिर कमरे में जाकर लेट गई।
छोटे बेटे का फोन कई बार आ चुका था।
थोड़ी देर बाद डोरबेल बजी वो लपककर दरवाजे पर पहुँची। रिपोर्ट आ चुकी थी। उसने डॉक्टर को मजबूरी बताई थी इसलिए उन्होंने घर पर ही रिपोर्ट भेज दी थी। निर्मला ने दरवाजा भी बंद नही किया।कमरे पर आकर उसने देखा- कोरोना नेगेटिव । उसकी आँखें आँसुओ से भीग गई। दौड़ते हुए वो ऊपर गई। श्रेय को गले से लगा लिया। दादी की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव है श्रेय। वो न जाने कितनी देर तक उसे गले से लगाये यही कहती रही। श्रेय की खुशी का तो ठिकाना ही नही था। दो मिनट के अंदर ही वो पूरे मोहल्ले में इस बात का प्रचार कर आया। नीना तो तुरंत घर मिलने भी चली आई- मैं पहले ही कह रही थी तुम्हे कोरोना नहीं होगा। निर्मला ने कोई जवाब नही दिया बस मुस्कुरा दी।
पर अगर उसे कोरोना होता तो… ये सोचकर उसकी रूह कांप उठी। उन लोगों के बारे में सोचकर जो इस मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं , उसकी आँखों से आँसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा।
श्रेय आ चुका था। अब आप क्यों रो रही हो आपको तो कोरोना नही है।निर्मला ने उसे गले से लगा लिया।
वाकई में इस कोरोना काल मे बहुत से लोगो ने बेहद मुश्किल हालातों का सामना किया है। आप सभी पाठकों से मेरा अनुरोध है कि किसी को भी हींन दृष्टि से देखने के स्थान पर उसकी हरसंभव मदद के लिए आगे आएं और मानव होने का फर्ज निभायें।
एक कदम मानवता की ओर।

– मानसी पाल ‘मन्सू’

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 296 Views

You may also like these posts

डमरू वर्ण पिरामिड
डमरू वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
खामोश
खामोश
Kanchan Khanna
अधूरा नहीं हूँ मैं तेरे बिना
अधूरा नहीं हूँ मैं तेरे बिना
gurudeenverma198
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
परम प्रकाश उत्सव कार्तिक मास
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ना मैं निकला..ना मेरा वक्त कही..!!
ना मैं निकला..ना मेरा वक्त कही..!!
Ravi Betulwala
अगर
अगर "स्टैच्यू" कह के रोक लेते समय को ........
Atul "Krishn"
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
ग़ज़ल-जितने पाए दर्द नुकीले
ग़ज़ल-जितने पाए दर्द नुकीले
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
इसलिए आप मुझको बुलाए नहीं
इसलिए आप मुझको बुलाए नहीं
Sudhir srivastava
पति पत्नी में परस्पर हो प्यार और सम्मान,
पति पत्नी में परस्पर हो प्यार और सम्मान,
ओनिका सेतिया 'अनु '
"प्रेम कभी नफरत का समर्थक नहीं रहा है ll
पूर्वार्थ
" रफूगर "
Dr. Kishan tandon kranti
अपने सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र के महत्त्व को समझें
अपने सनातन भारतीय दर्शनशास्त्र के महत्त्व को समझें
Acharya Shilak Ram
समझ
समझ
Dinesh Kumar Gangwar
कभी ख्यालों में मुझे तू सोचना अच्छा लगे अगर ।
कभी ख्यालों में मुझे तू सोचना अच्छा लगे अगर ।
Phool gufran
2551.*पूर्णिका*
2551.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
लौट के आजा हनुमान
लौट के आजा हनुमान
Baldev Chauhan
भूमिका
भूमिका
अनिल मिश्र
जानेमन
जानेमन
Dijendra kurrey
टूटे अरमान
टूटे अरमान
RAMESH Kumar
भावुक हुए बहुत दिन हो गए
भावुक हुए बहुत दिन हो गए
Suryakant Dwivedi
ब्यथा
ब्यथा
Jai Prakash Srivastav
कागज का रावण जला देने से क्या होगा इस त्यौहार में
कागज का रावण जला देने से क्या होगा इस त्यौहार में
Ranjeet kumar patre
अपना कहूं तो किसे, खुद ने खुद से बेखुदी कर दी।
अपना कहूं तो किसे, खुद ने खुद से बेखुदी कर दी।
श्याम सांवरा
इतनी बिखर जाती है,
इतनी बिखर जाती है,
शेखर सिंह
*सॉंप और सीढ़ी का देखो, कैसा अद्भुत खेल (हिंदी गजल)*
*सॉंप और सीढ़ी का देखो, कैसा अद्भुत खेल (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
पारिवारिक समस्या आज घर-घर पहुॅंच रही है!
पारिवारिक समस्या आज घर-घर पहुॅंच रही है!
Ajit Kumar "Karn"
सु
सु
*प्रणय*
इक रोज़ मैं सोया था,
इक रोज़ मैं सोया था,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
संतुष्टि
संतुष्टि
Dr. Rajeev Jain
Loading...