“कोरोना में जिंदगी की मुश्किल”
अजीब दर्द है,उलझन है, तन्हाई है।
जिंदगी मुश्किलों में उतर आई है।
एक आस से नजरे देखती है उधर।
जिधर से यादों की झलक आई है।
सोचता हूँ क्या खत्म है यह सफर।
गुनता हूँ खुद में कई सौ जहर।
वह आखिरी पड़ाव नजर आई है।
जिंदगी मुश्किलों में उतर आई है।-१
जो साथ थे,सपने थे,अपने थे।
बिताए पल खुशी के कुछ हमने थे।
टूट सा अचानक वह मंजर गया।
सपनों पर जैसे कोई खंजर गया।
एक पल में जिंदगी बिखर आई है।
जिंदगी मुश्किलों में उतर आई है।-२
जहा से जाने पर तुम ये कहना।
नेकदिल था,मुस्कुराता भी था।
कुछ नया आजमाता भी था।
सोचते रहना क्या कमी रह गई ।
जो तकलीफ बेदर्द सही ना गईं।
आँख अश्कों से छलक आईं है।
जिंदगी मुश्किलों में उतर आई है।-३
यह कविता लेखक द्वारा रचित कविता है।
@मनीष कुमार सिंह ‘राजवंशी’
अस्सिस्टेंट प्रोफेसर बी0एड0
स0ब0पी0जी0 कॉलेज बदलापुर
जौनपुर उत्तर प्रदेश