#कोरोना दोहे#
कोरोना दोहे
//दिनेश एल० “जैहिंद”
अब दो हज़ार बीस तो, बन बैठा यमराज,
ज़िंदगी तो ठहर गई, ठप्प पड़े सब काज,,
साँस रुके अरु दम फुले, हिया बड़ा घबराय,
मौत चक्षु संमुख दिखे, कुछ नहीं कहा जाय,
ऐसा मर्ज़ हुआ नहीं, यूँ तो लगा कयास,
कोरोना ने रच दिया, नया यहाँ इतिहास,,
नहीं भुला सकते कभी, कोरोना का मर्ज़,
जख़्म दिये इतने हमें, भूल गए हम फ़र्ज़,,
दवा नहीं इसकी कहीं, नहीं कोई उपाय,
सारा जग बेहाल है, सब करे हाय-हाय,,
जग हेतु मनहूस रहा, यह दो हज़ार बीस,
चहुँ ओर चीत्कार मचा, नज़र फेरो रवीश,,
बीस-बीस का आँकड़ा, बन बैठा है काल,
अनगिनत के प्रान गये, हैं असंख्य बेहाल,,
ज्यों कोरोना रिपु बना, अक़्ल गई चकराय,
हर देश का हाल बुरा, कौन सुमार्ग सुझाय,,
रब की तो मर्ज़ी नहीं, क्या मरे सब अकाल,
भूल हमारी माफ़ हो, काटो प्रभु अब जाल,,
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दिनेश एल० “जैहिंद”
जयथर, छपरा (बिहार)