कोरोना क्यूँ..
एक देश लिए,
भौगोलिक समृद्धि।
जनाधिक्य और ,
तकनीकी वृद्धि।।
रेलों में ,
लगती कतारें।
पानी के लिए,
लाइन में ,
मटके पधारे।।
जिसके लिए हर जगह,
मिल जाती छूट।
पर पानी का डब्बा लिए,
खड़े ऐसे हैं,जैसे है ,
शौचालय की लूट।।
सांसें मिलती मुफ्त की,
उसकी कीमती,
इतनी बढ़ी।
एक एक बॉटल के लिए,
दुनिया अपनी,
जान ले खड़ी।।
अपना लगता ,
अब कोई नहीं,
अकेले दम घुटता है।
इक पल सांसों का,
क्या ठिकाना,
अब मुश्किल से ,
धैर्य जुटता है।।
श्मशान में जाते ही ,
छूट जा रहे हैं सब छुआ छूत,
पास पास ही जल रहे हैं।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र ,
और राजपूत।।
कतारें देखीं थीं,
जीने के लिए,
राशन खातिर।
पर कतारें लगी ,
श्मशानों में,
क्यूँ बना मानव ,
इतना शातिर।।
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