कोरोना को भगाने के लिए, आत्मबल का संबल चाहिए!!
सर्दी खांसी पहले भी होती थी,
कितने ही बार इसको झेला है,
जुखाम बुखार भी कितनी बार हुआ,
इसको भी बार बार झेला है,
कभी ना हम इनसे घबराए,
जितना कोरोना से घबराए हैं।
टी वी के मरीजों से मिलते-जुलते थे,
कैंसर के रोगियों से भी ना डरते थे,
डेंगू, चिकनगुनिया, और मलेरिया,
हैपेटाइटिस, एचआईवी एड्स,इनफलेन्जा,
दिमागी बुखार, चेचक, और हैजा,
ना जाने कितने रोगों से लड़कर जीते हैं,
हे कोरोना तेरी तो बिसात क्या है,
हममें जीने का जज्बा बड़ा है,
तुझसे भी हम पार पा ही लेंगे,
हर हाल में तुझको जीत ही लेंगे।
हमारी जीवन शैली निराली है,
शुरुआत में हमने दिखाई दरियादिली है,
तेरे आगमन पर तुझको सम्मान दिया है,
अपने काम-धाम को विश्राम दिया है,
जैसा कि मेहमान के आने पर करते हैं,
मेहमान की आवभगत में जुटे रहते हैं,
किन्तु मेहमान की भी एक मर्यादा होती है,
दो चार दिन तक तो आवभगत होती है,
लेकिन जब मेहमान जाने को नहीं कहता,
तो तब हम भी अपने काम पर चल पड़ते हैं,
और उसके जिम्मे कुछ काम छोड़ते हैं,
जाते हुए उसे बता जाते हैं,
तुम यह काम देख लेना,हम अपने काम से लौट कर आते हैं,
यह उसको जाने का इशारा होता है,
फिर भी यदि वह ना जाए तो,
तब उसको बे झिझक धकियाने का कार्य होता है।
अब तक हमने बहुत सब्र किया है,
पर तूने हमको नित्य रोज तंग किया है,
तू अपनी मनमानी पर उतर आया है,
तूझे अपने छलावे पर गुमान हो आया है,
तो अब देख हमने भी कमर कश ली है,
अपने काम-धन्धे की डगर पकड़ ली है,
आवा जाही भी हम करने लगे हैं,
शादी-विवाह भी रचने लगे हैं,
बस यूं समझ अपने ढर्रे पर चलने लगे हैं,
हां थोड़ा-बहुत एहतियात भी बरत रहे हैं,
जब तू आया था तब हम पर तेरा असर था,
तू बहुत ही खतरनाक है इसका डर था,
अब हमने तेरी फितरत को जान लिया है,
जो परहेज से रहे,वह तुझसे बचा हुआ है,
तो समझले हमको परहेज करना आता है,
तू अपनी मर्जी से आया था, अब हमारी बेरुखी से जाएगा,
तूने कुछ दिन उधम मचाया, अब धक्के खा खाकर जाएगा।।