कोरोना के रोने को क्या रोना
कोरोना के रोने को क्या रोना , ज़रा इसको समझ लेना ।
जहाँ में जब जो होना है , जो होना है सो है होना ।
धरे सब नोट रह गए उनके खातों और किताबों में ,
जिन्हें जाना था वो तो चल दिये बातों ही बातों में ।
कोई पण्डित मुल्ला मौलवी फिर काम न आया ,
न पैथी की दवा ने कोई भी असर दिखलाया ।
नहीं है काम की यह संम्पदा धन और यह दौलत ,
बहुमूल्य जीवन है कि अच्छे स्वास्थ्य की बदौलत ।
गरीबी में दिखाई दी गजब की प्रतिरोधक क्षमता ,
अमीरी हर ले गयी रोगों से लड़ने की सभी क्षमता ।
असल हीरो नहीं हैं वे जो करते काम फिल्मों में ,
महानायक हैं जो निश दिन जूझते अस्पतालों में ।
लगा कैसा तुम्हें अब घर के अंदर बन्द रह कर के ,
सोचो उन्हें तुम जिनको रखते पिंजड़ों में बंद कर के ।
व्यर्थ की रह गयी नित नई खोजी जानकारी ,
प्रकृति है सर्वोपरी हमको सिखाती ये महामारी ।
लिख रहा इतिहास असफ़लता के प्रथम अध्याय को ,
जिसे साबित किया चिकित्सा व्यवसाय ने इस जगत को ।
बताया धर्म ने है हम सबको जो जीवन मार्ग यापन ,
वज़ू हो कि पृच्छालन सभी सिखलाते शुचि पालन ।
डॉ पी के शुक्ला , मुरादाबाद . उ प्र