कोरोना के चलते मरीजों पर दोहरी मार
कोरोना के चलते मरीजों पर दोहरी मार
——————- —-प्रियंका सौरभ
आज देश में एक तरफ कोरोना का भय है तो दूसरी तरफ अस्पतालों में इलाज के लिए सात-आठ लाख रुपये एडवांस में जमा कराने का दवाब लोगों को डर के साये में जीने के लिए मजबूर का रहा है। ऐसे में आखिर लोग जाएं तो जाएं कहां। जीवन को बचाने की जद्दोजहद में वे जिस अस्पताल में है और डॉक्टर में भगवान् का रूप देख रहे हैं, वे इस संकट काल में जीवन का सौदा करने में लगे हैं। ऐसी ख़बरों का आना निसंदेह एक चिंता का विषय हैं. दरअसल संक्रमण के खिलाफ जंग के लिए निर्णय क्षमता का अभाव हर समय नजर आया है। यही वजह है कि एक दिन कुछ आदेश जारी होते हैं और फिर अगले दिन वे आदेश वापस हो जाते हैं। क्या ये सब स्वास्थ्य की समस्या को संभालने की निर्णय की प्रक्रिया में स्वास्थ्य विशेषज्ञों को शामिल नहीं करने का परिणाम है।
कोविद -19 उपचार के लिए निजी अस्पतालों द्वारा ओवरचार्जिंग की खबरों के बीच राज्यों को प्रदान की गई सेवाओं के लिए उचित और पारदर्शी शुल्क सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। मंत्रालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को बिस्तर उपलब्धता और महत्वपूर्ण देखभाल स्वास्थ्य सुविधाओं की सुविधा के लिए भी कहा है। सरकार ने कहा कि कुछ राज्यों ने पहले ही इस संबंध में पहल की है। वे उचित दरों और रोगी में प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण देखभाल प्रदान करने की व्यवस्था पर निजी क्षेत्र के साथ एक समझौते पर पहुंच गए हैं। पूरे देश भर में आज कोरोनोवायरस परीक्षण की लागत को कम करने और निजी सुविधाओं में उपचार शुल्क को कम करने की मांग उठ खड़ी हुई है। देश भर में ओवरचार्जिंग की खबरें आ रही है. कोरोना वायरस के चलते निजी अस्पतालों में मरीजों का इलाज महंगा हो गया है। सामान्य सर्जरी में आठ से दस हजार रुपये बढ़ गए हैं। निजी चिकित्सक मरीजों से चिकित्सकीय टीम के लिए पर्सनल प्रोटक्शन इक्विपमेंट (पीपीई किट) का पैसा अतिरिक्त वसूल रहे हैं। अगर निजी लैब में कोरोना वायरस की जांच कराते हैं तो इसका 4500 रुपये अतिरिक्त चार्ज लिया जाता है।
कोरोना वायरस से बचाव के लिए अब ऑपरेशन और प्रसव से पहले कोरोना वायरस की जांच अनिवार्य रूप से कराई जा रही है। जो सरकारी लैब में जांच नहीं कराता है तो उसे प्राइवेट लैब में जांच के लिए 4500 रुपये अलग से देने होते हैं। ऐसे में मरीजों पर महंगे इलाज़ की मार बढ़ती जा रही है.
इस बारे हमारा सर्वोच्च न्यायालय शुरू से ही काफी गंभीर रहा है और उसने समय-समय पर अपनी बात रखी है लेकिन समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. निजी / कॉरपोरेट अस्पतालों में कोविद -19 रोगियों के इलाज के लिए “लागत संबंधी नियमों” की मांग करने वाली याचिका पर मई 2020 में एक सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जिन निजी अस्पतालों को अस्पतालों का निर्माण करने के लिए सरकारों से मुफ्त जमीन मिली थी, उनकी आवश्यकता कोविद -19 रोगियों का नि: शुल्क इलाज के लिए कोरोना के समय क्यों नहीं होनी चाहिए। इसी बीच केंद्र ने जून 2020 में अपने जवाब में कहा कि उसके पास निजी अस्पतालों को मुफ्त इलाज देने के लिए कहने की कोई कानूनी शक्तियां नहीं है, और यह मामला राज्यों के पास है। इस मामले पर अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है
भारत में चल रहे कोविद -19 महामारी के दौरान, सरकार ने हेल्थकेयर श्रमिकों द्वारा आवश्यक कुछ वस्तुओं की कीमतों में कटौती की है, जैसे कि हाथ सेनाइटिस और सर्जिकल मास्क, हालांकि, एन 95 मास्क और पीपीई किट को मूल्य नियंत्रण के तहत नहीं लाया गया है। नेशनल फ़ार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी का कहना है कि केंद्र सरकार दवाओं और उपभोग्य सामग्रियों जैसे पीपीई, सैनिटाइज़र, दस्ताने और मास्क की कीमतों को नियंत्रित कर सकती है। लेकिन चूंकि राज्यों में निजी अस्पतालों को संभालना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, उन्हें अस्पतालों में डायग्नोस्टिक्स और समग्र उपचार की कीमतों को ठीक करने के लिए अपने संबंधित राज्य कानूनों को लागू करना चाहिए।
जो निजी अस्पताल सार्वजनिक भूमि पर काम कर रहे हैं, कोविद -19 रोगियों को मुफ्त में या बिना लाभ के आधार पर इलाज करने के लिए शीर्ष अदालत को गंभीर निर्देश जारी करने चाहिए.केंद्र सरकार को गरीब और कमजोर लोगों द्वारा निजी अस्पतालों में किए गए खर्च को वहन करना चाहिए, जिनके पास कोई बीमा कवरेज योजना नहीं है। वैसे भी मेडिकल ट्रीटमेंट संवैधानिक कर्तव्य का भाग है और किसी व्यक्ति को केवल इस आधार पर इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वह इतने महंगे इलाज के लिए पैसे देने की स्थिति में नहीं है।
वर्तमान में, सरकार ने प्रति परीक्षण Rs.4,500 की कीमत निश्चित की है, जो एक मध्यम वर्ग के रोगी के लिए भी बोझ है। गरीबों के पास इसकी कोई पहुंच नहीं है और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि रोगी को कोई आर्थिक बोझ का सामना न करना पड़े। केंद्र और राज्यों में सरकारों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और सभी के लिए सुलभ होने की जिम्मेदारी लेनी होगी। इसके लिए सरकारों को न केवल सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर क्षमता का विस्तार करना होगा, बल्कि निजी क्षेत्र में उपलब्ध क्षमता का भी उपयोग करना होगा।
भारत के निजी कॉरपोरेट अस्पतालों ने अतीत में विभिन्न रूपों में सरकारी सब्सिडी प्राप्त की है और आज उनसे पुनर्भुगतान करने का समय आ गया है। ऐसे अस्पताल विशेष देखभाल प्रदान करने के लिए भी अच्छी तरह से तैयार हैं और ऐसा करने के लिए उनके पास विशेष बुनियादी ढांचा है। हमें ये ध्यान रखना होगा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा न केवल इलाज़ के पैसों पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक है, बल्कि संकट की तैयारी और स्वास्थ्य के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक है।
— —-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
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