कोरोना की भीषण त्रासदी को बयाँ करती यह रचना
कोरोना
कोरोना की इस भयावह त्रासदी के समंदर में डूबे करोड़ो मजदूर
कोरोना की इस महात्रासदी में मैंने , इंसानियत को तार – तार होते देखा
दो वक़्त की रोटी की आस लिए और अपनों से बिछुड़ने का गम
बिलखते भूख से मजदूर, आँखों में आंसू हज़ार देखा
कोसों पैदल चलने की पीड़ा से उन्हे नहीं था गुरेज़
सड़क पर ट्रकों तले रौंदते , ट्रेन से कटते मैंने बार – बार देखा
मुसीबत के इस दौर में थी उन्हें जिन नेताओं से आस
किसी नेता को क्रिकेट, किसी को पोलो खेलते मैंने बार – बार देखा
बिखर गए सपने , बिखर गयीं सभी आशाएं
राजनीति के ठेकेदारों के चेहरे पर , बेशर्मी मैंने हज़ार बार देखा
वोट देकर जिन्हें समझा था , अपने उज्जवल भविष्य का हमसफ़र
ऐसे नेताओं द्वारा मानवता का चीरहरण मैंने बार – बार देखा
नन्ही – नन्ही जान चली जा रही थी सड़क पर , न खाना न पानी
चीख पुकार का ये आलम मैंने हज़ार बार देखा
भयावह पीड़ा से गुजर रहे थे मजदूर और उनका परिवार
बिलखते बच्चे और उनकी आँखों में आंसुओं का समंदर हज़ार – हज़ार देखा
चलती रही वो कोख में अपनी आशाओं का दीपक लिए
सड़कों पर नवजात की चीख का मंजर मैंने बार – बार देखा
पड़ रहे थे डंडे फिर भी चले जा रहे थे घर पहुंचने की आस लिए
पुलिस वालों का अपने डंडे के प्रति इतना प्यार मैंने पहली बार देखा
कोरोना की इस भयावह त्रासदी के समंदर में डूबे करोड़ो मजदूर
कोरोना की इस महात्रासदी में मैंने , इंसानियत को तार – तार होते देखा
दो वक़्त की रोटी की आस लिए और अपनों से बिछुड़ने का गम
बिलखते भूख से मजदूर, आँखों में आंसू हज़ार देखा