कोरोना की चीत्कार
दिख न रहा अब कोई महान ।
जान ले लेगी ये वैश्विक महामारी ।
कोरोना के आगे कम पङ रहा कब्र श्मशान ।
कुदरत से खिलवाड़ का पुरा धरा भुक्ते अंजाम ।
वैश्विक महामारी कोरोना ले रही सबकी जान ।
टीका अब तक बना नही सामाजिक दूरी इलाज ।
मास्क लगाना, हाथ को धोना कॉमन हो गयो आज ।
स्वच्छता ही आन्दोलन बना हैं, उसी पर पुरा विश्व अङा है ।
रेडियो, अखबार,टेलीविजन हर जगह हैं कोरोना का परिसीमन ।
कोई कितना दिन तक रहेंगे भूखे गरीब, मजदूर, लाचार ।
रोजी-रोटी पर तो उनके हो गया अत्याचार ।
पुरे आकाश के प्रकाश मे दिख रही तबाही ।
मारे-मारे ही सब फिर रहे बढ रही महंगाई ।
खेती -किसानी से ही जीवन की हैं अब तो डोर ।
पेट भरे तो खुशहाली रहती है चहुँओर ।
मैं आनंद सभी से करता हूं गुहार ।
जब तक कोई इलाज न इसका ।
छोडो न घर-द्वार ।
यही हैं सभी से विनती अपनी बारम्बार ।
विकसित -विकसित देश भी इसका ।
न कर सके कोई प्रतिकार ।
लाशे बिखरी हैं सङको पर ।
कौन सुने चीत्कार ।
Rj Anand Prajapati