कोरोना की अजब मार है
कोरोना की अजब मार है
कोरोना की अजब मार है
हर सांस हुई बेजार है
सूझती नहीं राह किसी को
कैसी अजब कुदरत की मार है
बुजुर्ग तो बुजुर्ग
अब युवाओं पर भी इसकी मार है
अजब पीड़ा का दौर ये
लाशों की भरमार है
दो गज जमीन का अभाव है
अजब कोरोना की मार है
तड़पती साँसों का
समंदर हो गयी ये धरा
पेड़ों की शाखाएं ढो रहीं
जीवित आत्माओं का बोझ
इन जीवित आत्माओं को अपने
मोक्ष का इंतज़ार है
झूठ का पुलिंदा होती राजनीति की भी
जनता पर अजब मार है
गली – चौराहों पर तड़पती
जिंदगियों का अंबार है
लुटेरों का अजब बोलबाला है
नकली दवाइयों ने भी छीना जिन्दगी का निवाला है
नेता करते एक दूसरे पर वार
जनता की जिन्दगी के साथ ये कैसा छलावा है
कोरोना की अजब मार है
हर सांस हुई बेजार है
सूझती नहीं राह किसी को
कैसी अजब कुदरत की मार है