कोरोना का विध्वंश
कोरोना का विध्वंश फैल रहा,
त्राहिमाम हर ओर है,
विश्व यातना झेल रहा,
मृत्यु तांडव विकराल हुआ।
मानवता पहचानी गई,
धर्म–मर्म सब रूक गया,
मृत्यु के हाहाकार से,
सब जातिबंधन भूल गया।
नजदीकियां कम हो गई,
यातायात भी रूक गया,
आधुनिकता का सारा दंभ चकनाचूर हो गया,
सुख, शांति और समृद्धि।
सब इतिहास बनकर रह गई,
मानव की मानवता भी,
चारदीवारी में सिमट गई,
जितना चाहो बच लो यारों,
ये कोरोना काल है।