कोरोना का नही रोना
मुश्किल बड़ी थी,जंग हमने लड़ी थी,
शत्रु अनदेखा ,मुसीबत आन पड़ी थी,
फिर भी दिखाई सबने बड़ी हिम्मत,
संकट की वो दुरूह वाली घड़ी थी।
प्रकृति के साथ खिलवाड़ का परिणाम,
मानव को बचाने का हर कोशिश नाकाम,
सामाजिक दूरी बनाए रखने का इन्तजाम,
फिर भी न हुआ कोरोना का काम तमाम।
हमने भी एक जुगत लगाई,
अपने शौक को जिंदा करने की उम्मीद जगाई,
कोरोना काल में अपनों के साथ वक़्त बिताई,
फिर कोरे पन्नों पर है जिंदगी लिखाई।
प्रकृति का कहर अब कब हार मानेगा,
इंसान से वो कब तक ही रार ठानेगा,
हमने भी जिद की है कभी रोना ना,
कोरोना का कहर कितना भी करोना।