कोरोना काल
देख कर हर तरफ दर्द की लहरियां
बढ़ती ही जा रहीं दिल की वीरानियां
हाल जिंदा हैं उनका तो क्या पूछिए
लग रहीं हैं शवों की भी अब पंक्तियां
मुफ्त मिलती रही जो हमें प्राण वायु
मोल मिलने में भी उसके दुश्वारियां
बेबसी भी जरा अपनों की देखिए
दाह संस्कार से भी हुई दूरियां
नन्हा बचपन भी मुरझाया है कैद में
हैं उदासी भरी उसकी किलकारियां
आज कष्टों में कितने खड़े हम सभी
पर वजह भी हमारी ही नादानियां
आज खाली हैं कल थी बहुत व्यस्तता
‘खा रही हैं बहुत अब ये खामोशियां
हमको विश्वास पर पहले की ही तरह
“अर्चना” मुस्कुराएंगी फिर वादियां
6.5.2021
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद