कोरोना काल का प्यार
शादाब सा अभी नायाब मेरा इश्क़।
बेदाग का माहताब कर दिया तूने।।
होठों की गुलाबियत,आखों की कशिश छींन ली तूने।
कोरोना, आशिकों की नींद छींन ली तूने।।
नाम लहर का लेकर, तू सुनामी बनता है।
सांस बनकर साँसों में आखिरी सांस बनता है।।
बड़ा परेशान हूँ, हवा के इस हम-नफ़स से।
सांस लूँ तो मर जाऊं, ना लूँ तो मर जाऊं।।
पिघलते इश्क़ को भी छूना, दुर्भर कर दिया है तूने।
मेरी जवानी में ही आने का ऐलान क्यों कर दिया तूने.??
मुझे माफ़ करना मेरे संजीदा इश्क़,
मास्क लगाकर चूम रहा हूँ होठ तेरे।
नही चाहता कि बाजार खुलते ही,
सफेद लिबास की हो जरूरत खरीदने में।।