कोरोना (कहानी)
‘करोना’ यह एक ‘वायरस’ का नाम है, जो चीन के ‘वुहान’ शहर ‘हुबेई’ में दिसंबर के महिने में जन्म लिया था। सबसे पहले इस वायरस की पुष्टि एक व्यक्ति के अन्दर हुई थी। पाँच दिन बाद उस बीमार व्यक्ति के 53 वर्षीय पत्नी को निमोनिया हो गया। निमोनिया इस करोना बीमारी का आम लक्षण था। उस महिला को अस्पताल में भर्ती करके आइसोलेशन वार्ड में रखा गया। उसके बाद दिसंबर के दूसरे सप्ताह में वुहान के डॉक्टरों के सामने कुछ और नए मामले आए। इससे पता चला कि यह वायरस एक इन्सान से दूसरे इन्सान में फैल रहा है। फिर धीरे-धीरे इस वायरस का विस्तार होने लगा। अब तो इस वायरस के विषय में सभी देशों के न्यूज़ चैनलों पर न्यूज भी आने लगा है। इस तरह से यह वायरस धीरे-धीरे पूरे दुनिया को अपने चपेट में लेने लगा है। अब यह वायरस थाईलैंड, जापान, इटली, स्पेन आदि कई देशों में फैल गया है। शुरू में कोई भी देश इस वायरस को गंभीरता से नहीं ले रहा था। जिसके फलस्वरूप लाखों लोगों कि जानें चली गई। धीरे-धीरे यह वायरस अब भारत में भी अपनी घुसपैठ बना लिया है। हम भारतीयों ने भी सोचा नहीं था कि यह वायरस इतना विस्तार रूप धारण करेगा। एक दिन हमारे प्रधान मंत्री ने टेलीविजन पर इस वायरस के बारे में चर्चा करते हुए कहा था। यह बड़ा ही खतरनाक वायरस है और अभी तक इसका कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं है। उन्होनें 22 मार्च 2020 को देश भर में सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक ‘जनता कर्फ्यू’ लगाने की घोषणा किया था। हम सब देशवासी को इस वायरस से बचना है। उन्होंने दो बार देश के नाम सन्देश भी दिया। “आप अपने घरों में रहें, घरों से नहीं निकले, सामाजिक दूरिया बना कर रहें। इस बीमारी के बचाव का एकमात्र यही सबसे उत्तम उपाय है”।
बात उस रात की है, जिस दिन हमारे आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के नाम सन्देश दिया था। उस दिन मन बहुत विचलित हो रहा था। ‘कोरोना’ के बारे में सोच-सोच कर कई विचार मन में आ जा रहे थे। आखिर यह ‘कोरोना’ क्या है? कैसा दिखता है? ब्रह्मांड में इतने सारे जीव है। उन सभी जीवों में मनुष्य सबसे बुद्धिमान है, फिर भी वह कोरोना से हार रहा है। इतने सारे लोगों को वह अपने चपेट में ले रहा है। अभी तक इस बिमारी से पूरे विश्व में लाखों लोगों की जाने जा चूकी है। और अभी कितने लोग इसके शिकार होंगे यह कहना भी बहुत मुश्किल है, क्योंकि अभी तक इस वायरस का कोई भी वैक्सिन, टीका, या दवाई नहीं है। सिर्फ अपने-आपको लोगों से दूर, घर में बंद रखना और सामाजिक दूरियां बना कर रखना ही बचाव का मुख्य उपाय है। हमने अभी तक अपने दादा-दादी, नाना-नानी और गाँव के लोगों से महामारी के बारे में सुने तो थे लेकिन देखें नहीं थे। जैसे – प्लेग, कॉलरा, हैजा, चेचक, टायफाइड आदि। कोरोना महामारी को सुनकर मुझे अपनी दादी की बात याद आ गई। जब मैं छोटी थी तब मेरी दादी ‘प्लेग’ के विषय में बातें करती थी। वे बताती थी कि एक समय गाँव में प्लेग महामारी फैला हुआ था। एक दिन में कई-कई लोगों की जाने चली जाती थी। प्लेग महामारी से बचने के लिए लोग अपने गाँव को छोड़कर दूसरे जगह चले जाते थे। मेरी दादी भी उस प्लेग के डर से अपने बच्चों को लेकर ससुराल से मायका आ गई थी। उसके बाद वह दुबारा अपने ससुराल नहीं गई। कारण यह था कि उस महामारी के बाद उनका कोई अपना नहीं बचा था। सभी स्वर्ग सिधार गए थे। सिर्फ उनके खेत में काम करने वाले व्यक्ति ‘खेदुआ’ और ‘बगेदुआ’ ही बचे थे। यही सब सोचते-सोचते मुझे कब नींद आ गई पता नहीं चला।
यह ‘कोरोना’ वायरस ‘वुहान’ के जिस बाजार से आया है। उस वुहान के बाजार में एक सौ बारह प्रकार के मृत और जीवित जानवरों के साथ कीट-पतंगे बिकते हैं। उन्हीं मृत और जीवित जानवरों और कीट-पतंगों से चीन के निवासी अपनी क्षुधा को तृप्त करते हैं। किसी ने सच ही कहा है- ‘जो जैसा करता है वैसा भरता है’ लेकिन विश्व के सभी देश चीन की तरह नहीं हैं’ फिर भी ‘जौ के साथ घून भी पिसता’ है। यह भी सत्य है। इन्सान ने प्रकृति के साथ बड़ा ही खिलवाड़ किया है। ‘प्रकृति’ ने मानव को मौका दिया था कि मानव फले-फूले और हमारी (प्रकृति) भी रक्षा करे, क्योंकि मानव सभी जीवों में सबसे उतम प्राणी है। मानव के पास सोचने, समझने की शक्ति है। लेकिन मानव ने प्रकृति को सिर्फ धोखा दिया है। वह अपने जीने के लिए तो प्रकृति से सब कुछ लेता रहा, लेकिन प्रकृति को दिया कुछ भी नहीं। ऐसा कब तक चलेगा, एक न एक दिन इसका बदला मानव को चुकाना तो पड़ेगा ही। आज विश्व में पांच प्रतिशत लोग ही हैं, जो प्रकृति का संरक्षण करते हैं। पंचानबे प्रतिशत लोग आज भी प्रकृति का सिर्फ दोहन करते हैं। जिसमे चीन का नाम प्रथम है। यह कितनी बड़ी बिडम्बना है। आज जिन जानवरों को चीनियों ने बड़े ही चाव के साथ मारकर जिन्दा या मुर्दा खाकर अपने पेट को भरा, अपनी आत्मा को तृप्त किया, आज वही जानवर या कीट-पतंगे कोरोना बनकर उसे भी चाव के साथ दौड़ा-दौड़ा कर ‘खा’ और ‘मार’ रहे हैं। यहाँ हम कह सकते हैं कि, ‘करे कोई और भरे कोई’। आज ऐसा कोई भी देश नहीं है जहाँ कोरोना महामारी का प्रवेश बाकी हो। यहाँ सिर्फ चीनियों का ही दोष नहीं है, जो जीवों को मारकर बड़े ही चाव से खाते हैं। विश्व में बहुत सारे देश हैं जो प्रकृति की रक्षा करने वाले जीवों को खाकर, विश्व और मानवता के दुश्मन बन गए हैं। लोग एक दूसरे को दिखाने के लिए ‘प्रकृति संरक्षण दिवस’ मानते हैं। कहना बड़ा ही सरल होता है। अगर मानव जाति ‘मन’, ‘वचन’ और ‘कर्म’ से प्रकृति दिवस मानए तो शायद ‘कोरोना’ भी मानव पर जरुर दया दिखता।
उस रात मुझे एक सपना आया। मैंने सपने में देखा कि एक बहुत घना जंगल है। उस जंगल के सभी पशु-पक्षी और जीव-जंतु अपनी-अपनी टोली में एक साथ बैठकर बातें कर रहें हैं। जैसे- बाघ, शेर, हाथी, लोमड़ी, चिता, हिरण आदि। दूसरी तरफ तोता, मैना, बुलबुल, कौआ, कोयल आदि पंछियों का भी जमावड़ा लगा हुआ था। सभी बहुत ही उदास थे। मैं भी उन्हें इस तरह से एक साथ देखकर सोचने लगी और एक पेड़ के पीछे छिपकर उनकी बातों को सुनने और समझने का प्रयास कर रही थी। जंगल का राजा शेर अपने साथियों के समक्ष दुखी होकर संबोधित कर रहा था। मेरे सभी साथियों! हमें बहुत ही दुःख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि आज मानव बहुत ही कष्ट में हैं। सभी जानवरों ने एक साथ मिलकर कहा, हाँ महाराज! आपने सच कहा, “आजकल बहुत दिनों से कोई भी मानव कहीं भी आते-जाते दिखाई नहीं दे रहा है”। जंगल के राजा ने कहा, “सुना है कि पूरे विश्व में एक बहुत ही भीषण महामारी फैली हुई है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर जाती है। उसके बाद उसे एक खतरनाक बिमारी हो जाती है और मानव को खत्म कर देती है। दूसरे जानवर ने पूछा, तो क्या मानव का धरती पर विनाश होने वाला है? शेर ने कहा, नहीं! ऐसा तो नहीं होगा, कुछ जरुर बचेंगे। अन्य जानवरों ने पूछा, क्या हम जानवरों को भी यह बीमारी हो सकती है? चिता ने कहा, शायद नहीं, अबतक तो यह बिमारी सिर्फ मानव को ही हो रही है। आगे का पता नहीं। वैसे हमें भी सतर्क रहना चाहिए। कुछ कहा नहीं जा सकता है। हम सभी इस पृथ्वी पर एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति का मानव से और मानव का प्रकृति से बहुत ही गहरा संबंध है। लोमड़ी बोली, मानव अपने सुख के लिए हमारे निवास स्थान का विनाश कर रहे हैं। वे जंगलों को धराधर काट रहें हैं। जिसके कारण हम सभी को बहुत तरह के मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। सभी जानवर शेर की बातें सुनकर उसके हाँ में हाँ मिला रहे थे। उसी समय एक हाथी बोला मानव सिर्फ जंगल को नहीं काट रहें हैं, वे हम सब जानवरों का भी शिकार करते रहते हैं, जिससे दिन पर दिन हमारी जनसंख्या कम होती जा रही है। इसके करण पर्यावरण भी बिगड़ता जा रहा है। कभी अधिक वर्षा, कभी कम वर्षा, कभी सुखा पड़ना तो कभी बाढ़ की समस्या आदि से फसलों का नाश हो जाना आदि। हमेशा प्रकृति में उथल-पुथल होता ही रहता है। इस तरह सभी जानवर आपस में बातें कर रहे थे। उसी बीच चिड़ियों का एक झुंड उस ओर से उड़ता हुआ जा रहा था। जंगल में जानवरों की भीड़ को देखकर वे सब भी वही नजदीक के एक वृक्ष पर बैठकर उनकी बातों को सुनने लगे। सभी चिड़ियों ने एक साथ मिलकर कहा, महाराज! हम सब भी देख रहें हैं कि आज मानव बहुत दुखी और तकलीफ में हैं। वे सब हमें परेशान करते हैं, हमें शांति से जीने नहीं देते हैं, लेकिन क्या किया जाए, महाराज कुछ समझ में नहीं आ रहा है। उन्हीं में से एक चिड़िया बोली, इस बीमारी का करण भी तो मानव ही है। धरती माता ने उन्हें अनेक प्रकार के अनाज साग, सब्जी, फल आदि दिया है। फिर भी मानव उन जीव-जंतुओं को नहीं छोड़ता जिन्हें उनकी रक्षा करनी चाहिए। उसी समय एक तोता बोला, महाराज! मेरे पूर्वजों ने कवि तुलसीदास से एक दोहा सूना था। बात त्रेतायुग की है। आज मुझे वह दोहा याद आ रहा है। उन्होंने कहा था-
जब-जब होई धरम की हानि। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।।
करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी। सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी।।
तब-तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
अथार्त- जब-जब पृथ्वी पर धर्म का नाश, जीवों पर अत्याचार होगा, अभिमानी राक्षस प्रवृति के लोगों का वृद्धि होने लगेगा, तब-तब भगवान, कृपानिधान दिव्य शरीर धारण करके सज्जनों के कष्ट और पीड़ा को दूर करने के किए धरती पर अवतार लेते हैं। दूसरे पक्षियों ने एक साथ मिलकर कहा, प्रभु जब अवतार लेते हैं, तब वे सिर्फ दुष्टों का विनाश करते हैं। निरपराध और निर्दोष मानव का नहीं। यह तो पूरे मानव जाति का ही विनाश कर रहा है। इसका मतलब है, यह ‘कोरोना’ कोई शैतानी अवतार है? जो चीन के बुहान से मानव का विनाश करने के लिए निकला है। सच में यह ‘कोरोना’ शैतान ही है, यह तो दिखाई भी नहीं देता है, इसकी कोई पहचान भी नहीं है। यह तो निर्दोष, दोषी, बूढ़ा, बच्चा, अमीर, गरीब, बड़े, छोटे आदि किसी को भी नहीं छोड़ रहा है। मानव बिना कुछ गलती के मारे जा रहे हैं। सबसे अधिक तो बजुर्गों को यह मार रहा है। जबकि हमारे यहाँ बजुर्गों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। यह कोरोना शैतान के रूप में आया है। आज का मानव स्वार्थी और अपने आप को बुद्धिमान समझने लगा है। वह (मानव) अपने आगे किसी और को कोई महत्व ही नहीं देता है। इस बार धरती पर शैतान आया है। पृथ्वी भी कितना अन्याय और अत्याचार सहेगी, उसकी भी सहने की एक सीमा है। आज मानव अपने सुख के आगे अँधा हो गया है। वह अपने सिवा किसी और के बारे में सोचता ही नहीं है। अपने सुख के आगे वह भूल गया है कि हम प्रकृति का विनाश करेंगें तो प्रकृति भी हमारा विनाश अवश्य करेगी। वह हमारे द्वारा किए गए, हमसे एक-एक अत्याचार का हिसाब वापस कर रही है। उन सभी जानवरों की बातों को सुनकर मैं सोच में पड़ गई। अचानक मेरी नींद खुल गई। मैं कुछ समय तक सोचती रही कि अभी मैं कहाँ हूँ? यह सोचकर मुझे भोर होने का एहसास हुआ सुबह के चार बज रहे थे। मैं अपनी हथेलियों को निरखते हुए बोली,
“कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सारस्वती:, करमूले तू गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम्”।
उसके बाद धरती माता को प्रणाम कर अपने रोजमर्रा के कार्य में व्यस्त हो गई।
पिछले चार महीनों से हम सब लोगों के जीवन में बहुत सारे बदलाव आए हैं। इस बदलाव का कारण हम कोरोना को मानते हैं। इसके आने से बहुत बुरा होने के साथ-साथ कुछ अच्छा भी हुआ है। जिसका बदलना हमारे जीवन के लिए उपयोगी था। यह बदलाव कोरोना के कारण ही हुआ है। आज मानव को उसकी आदत बदलने के लिए आत्मबल मिला है, जिसके फलस्वरूप वह अपनी आदतों को समय और परिस्थिति के अनुसार बदलने में सफल हो रहा है।
1. सबसे पहले हमें यह सीखने को मिला कि मानव का वजूद प्रकृति से है, अर्थात प्रकृति से मानव है, मानव से प्रकृति नहीं है।
2. आज लोग बाहर खाना नहीं खाते हैं, बल्कि परिवार के सभी सदस्य घर में ही एक साथ मिलकर अपने-अपने पसंद का खाना पकाते और साथ बैठकर खाते हैं। यह बदलती हुई स्थिति की देन है।
किसी ने सच ही कहा है-
प्रकृति तेरा रूठना भी जरुरी था, इन्सान का घमंड टूटना भी जरुरी था।
हर कोई खुद को भगवान समझने लगा था,
यह शक मन से दूर होना भी जरुरी था।
जय हिंद