कोरोना कहर
हर मंजर देखो शहर का कैसा हो रहा है
शहर का शहर जैसे बंजर हो रहा है
मिट्टी का आदमी मिट्टी में समा रहा है
अकेले आया था जो अकेले जा रहा है
मौत को रो रहा नहीं कोई यहाँ
रो रहै कोरोना को लोग है
कर लो बंद खूद को घरों में कुछ दिन
ये तुम्हारें बाहर निकलने का भोग है ।
कर लो बंद खूद को घरों में कुछ दिन
ये तुम्हारें बाहर निकलने का भोग है ।
दुरीयों वाला रिश्ता ही अब सुहाता है
पास आने वाला अंदर ही अंदर डराता है
ये कैसी इंसानियत कर दी खुदा नें
मरनें वाला अपना और देह कोई ओर अपनाता है ।
सोनु सुगंध