कोरोना और पानी
कोरोना और पानी
पानी का बुलबुला
चमका और मर गया
बच्चे ताली बजा रहे थे
मर गया…मर गया
जाने कितने बुलबुलों
की, यूँ ही मौत हो गई
पानी
सोचता रहा, मैं जिंदा रहा
तो और बुलबुले होंगे..
मैं संवेदनशील हूँ
मैं जीवन देता हूँ
मैं किसी को नहीं डुबोता
लोग खुद डूबते हैं…
मैं तो कुंभ हूँ…!
जिसके घाट पर सबके
मेले लगते हैं
मैं तो साक्षी हूँ…
इस लोक से पारगमन का..
मेरी कोख में आकर
आँसू भी तैर जाते हैं.
आँख हो या गंगा
पानी पानी होता है
वेग भले लहरों का हो
संवेदना में बहता है।
पानी की बातें सुन
वो
मुस्कुरा रहा था…
हा हा हा… सुन पानी!
तुझ में ..कुछ बचा क्या?
आँख में पानी बचा क्या?
सुन, तू संवेदना पर…बहुत
इतराता था न…!
मैंने यही मार दी
अब न आँख में पानी है
और न दिल में पीर।।
कटी-कटी सी है
हाथों में लक़ीर।।
सूर्यकान्त