‘कोरोना’- एक दैत्य
आज समूचा विश्व संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, हर तरफ जिंदगी की मौत से लड़ाई चल रही..महामारी के मद्देनजर प्रस्तुत है –
एक ग़ज़ल:
‘कोरोना’ – एक दैत्य
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दर्द सबको दे रहा है शूल बन सबमें गड़ा है,
सामने सबके ‘कोरोना’ दैत्य बनकर अब खड़ा है।
छिन गया आंखों का सपना, लुट गया संसार जिनका,
कल तलक गुलज़ार था घर, अब वहाँ सूना पड़ा है।
क्या पता ये ‘दैत्य’ कब तक काल सा मंडराएगा,
क्या इसे मंजूर है क्यों इस कदर जिद्द पर अड़ा है।
मांगने को सांस, दर-दर अब भटकना पड़ रहा है,
अंत है कलियुग का ये, की पाप का फूटा घड़ा है।
“दीप” अब तो हस्पतालों में कहीं बिस्तर नहीं है,
मौत से संघर्ष में, अब खुद को ही लगना पड़ा है।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव