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10 May 2020 · 1 min read

कोरोनाकाल

मित्रों कल कोरोना ना वायरस की खोज में व्यस्त था ,आज रिपोर्ट का इंतजार है। इसी संदर्भ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए एक गीत प्रस्तुत कर रहा हूं। सादर समर्पित है।

सारा जीवन व्यर्थ हो गया, इस आर्थिक मंदी में।
भूख प्यास हो गयी पराई ,इस आर्थिक बंदी में ।

धूप छांव का होश नहीं अब, कोरोना से लड़ना है।
जीवन धर्म यही कहता है,कोरोना से बचना है।

हैं युवा ,बाल बृद्ध,मातायें, संकट में इस तंगी में।
भूख प्यास हो गई परायी, इस आर्थिक बंदी में।

राहों पर अब निकल पड़े हैं, राहगीर शहर की ओर ।
चलते जाना है मीलों तक ,छोड़ शहर गांव की ओर।

धर्म-कर्म सब छूट गये हैं ,इस नाका बंदी में ।
भूख प्यास हो गई परायी इस आर्थिक बंदी में।

सारा जीवन व्यर्थ हो गया,इस आर्थिक मंदी मे।
भूख प्यास हो गई परायी, इसत्र आर्थिक बंदी में।
सारा जीवन व्यर्थ हो गया ,इस आर्थिक मंदी में।

डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव “प्रेम”

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 415 Views
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