कोरोनाकहर में शिक्षा-व्यवस्था
कोरोनाकहर और लॉकडाउन में देश की न सिर्फ अर्थव्यवस्थाएं चरमरायी, अपितु सभी तरह की व्यवस्थाएँ पूर्ववत नहीं रही । मैं खुद नियमित व दिनचर्यारूपेण भोजन ग्रहण करने में विपन्न रहा। चाय, नाश्ते, दूध, हरी सब्जी, दाल इत्यादि इस अवधि में खा नहीं सका हूँ, कई वक्त रूखी-सूखी और सत्तू ही खाया, किन्तु जमीनी ‘शिक्षा’ प्राप्त करने के कारण ही इस अवधि में स्वाध्यायी रहा।
हाँ, लॉकडाउन में परिवार एकजुट हुए, परंतु पहले सोशल डिस्टेंसिंग के कारण समाज से दूरी और बाद में फिजिकल डिस्टेंसिंग के कारण पारिवारिक सदस्यों से भी शारीरिक दूरी लिए रह रहा ! हाथ-मुँह प्रक्षालन सहित मास्क और गमछी दिनचर्या में शामिल हो गई । धीरे-धीरे पारिवारिक सदस्यों की महत्वाकांक्षा ने चरम रूप अख़्तियार कर लिये और इतने दिनों में अदृश्य दुश्मन कोविड 19 का भय मानस-पटल पर गृहीत कर गए। इसी भय में रह रहे उस परिवार में ‘शिक्षा’ चौपट हो गई!
देश, राज्यों, विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में इसे पटरी पर लाने के लिए सर्वप्रथम भयमुक्त वातावरण बनाने होंगे, जो कि सामाजिक दूरी को खत्म कर ही संभव है, क्योंकि जागरूकता समाज ही ला सकती है, सामाजिक निकटता ही ला सकती है, समाज से दूरी नहीं ! भले ही हम दैहिक रूप से दूर रहें ! प्रशासनिक दबाव अथवा पुलिसिया डंडे से नहीं !
‘शिक्षा’ को पूर्ववत लाने के लिए समाज, विद्यार्थी के परिवार यानी अभिभावक, विद्यालय में जगह की पर्याप्तता, विद्यालयीय भवन और उपस्करों की पर्याप्तता, विद्यालय प्रबंध समिति, सह-शिक्षा का ध्यान, शिक्षकों की पर्याप्तता, पर्याप्त वाशरूम व बाथरूम, कम शिक्षक या कम भवन या जगह वाले विद्यालय में विद्यालयीय दैनंदिनी में वृहद संशोधन कर, सामूहिक प्रार्थना को निदान तक स्थगित रखकर, समुहवाले खेलों को छोड़ एकत्ववादी ‘योग’, वायरलैस वाले माइक्रोफ़ोन, स्पीकर, दूरस्थ शिक्षा-पद्धति लिए अत्यधिक गृहकार्य दिए जाकर तथा कोरोना के विरुद्ध उपलब्ध चिकित्सा किटों, स्वच्छता के संसाधन को विद्यालय में रखकर….. परंतु अभिभावकों को विश्वास में लेकर, वो भी लिखित, क्योंकि निकट भविष्य में कोरोना के विरुद्ध कोई दवाई आनी संभव प्रतीत नहीं है । अगर आ भी जाती है, तो भारत के गाँवों तक आने में कुछ वर्ष लग ही जाएंगे, इसलिए कोरोना से प्रभावित हो कोई छात्र या शिक्षक मर जाते हैं, तो यहीं पर उनके परिवार को विश्वास में लेना जरूरी है, तब दोनों के लिए ‘बीमा’ करने जरूरी होंगे, अन्यथा उनके परिवार टूट जाएंगे !
अगर 1 मीटर की दूरी ली जाय और विद्यालय 20×20 मीटर की ही हो और एकमंजिल भवनों की संख्या कम हो तथा सिर्फ कक्षा- 9 से कक्षा- 12 तक में छात्र/छात्राओं की संख्या 1,000 पार हो और शिक्षक भी 15 से ज्यादा नहीं हो, ऐसा होते हुए एक दिन में सभी विषयों की पढ़ाई हो अगर, तो 100 विद्यार्थी की पढ़ाई भी ऐसी व्यवस्था में असंभव होगी ! एक तो शिक्षक नियोजन इकाइयों की मन्थर गति ने विद्यालय में शिक्षकों की विषयवार पर्याप्तता पूर्ण नहीं की, दूजे तब चिह्नित छात्र/छात्रा को अगर सोमवार को बुलाते हैं, तो अगली सोमवार ही उसे बुलाए जाए ! शायद यह ‘रैंडम पद्धति’ हो, किन्तु यहाँ पर Odd या Even रोल नम्बरवाइज बुलाने का कोई तुक नहीं है, यह सेक्शनवाइज की जा सकती है ! शिक्षकों को भी एक दिनी अंतराल के बाद ही बुलाए जाए !
विश्वविद्यालय में छात्रों के पहुँचने के 1 या 2 साल के बाद ही वो बालिग हो जाते हैं, इसलिए विश्वविद्यालयीय छात्रों के लिए खास चिंता की बात नहीं हैं । वैसे भी महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में काफी स्पेस व जगह होती हैं, जो कि फिजिकल डिस्टेंसिंग की फॉर्मेलिटीज पूर्ण करने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं, किन्तु प्राइमरी से लेकर हाईस्कूल के छात्रों के लिए एतदर्थ शिष्ट नियम बनाना काफी मशक्कत लिए होगी ! हालाँकि असंभव शब्द डिक्शनरी में हो सकती है, किन्तु परिश्रमियों के लिए सबकुछ संभव है, तथापि ‘सिलेबस’ यूनिक बनाने होंगे और इसे प्रधानाध्यापक और उनकी अध्यापकीय टीम पर छोड़ देना चाहिए कि वे अपने अनुकूल पढ़ाएँ, किन्तु किसी संगीन घटना (क्रिमिनल एक्टिविटीज को छोड़कर) की स्थिति में matter को सिर्फ प्रधानाध्यापक या उनकी टीम के मत्थे ‘पेनाल्टी’ न धुसेड़ कर सरकार, प्रशासन और शिक्षाधिकारी को भी एतदर्थ सहयोग कर इसतरह की टीम को बचाने चाहिए यानी इलेक्शन की तरह टीम भावना से कार्य सम्पादित होनी चाहिए।
कक्षा- 1 से कक्षा- 6 तक के छात्रों को ऑनलाइन यानी इंटरनेट शिक्षा से मुक्त रखनी चाहिए, क्योंकि स्क्रीन देखते रहने से उनकी आँखों में/पर असर डाल सकती है । कक्षा- 7 से कक्षा- 12 तक ऐसी पढ़ाई हो सकती है, किन्तु विद्यालय में स्मार्ट क्लॉस के रूप में कई टीवी स्क्रीन लगाने पड़ेंगे ! वहीं जो विद्यार्थी रैंडम पद्धति के कारण उस दिन विद्यालय नहीं आएंगे, तो उन्हें घर पर ही रहकर ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए, किन्तु जिनके पास एंड्राइड मोबाइल सेट नहीं है, उन्हें छात्रों के गैर-जरूरी योजनामदों को बंद कर ऐसे एंड्राइड मोबाइल सेट सरकारी स्तर से उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
विद्यालय में स्वच्छ पानी की व्यवस्था, दवाई की व्यवस्था पल्स पोलियो अभियान की तरह नियमितीकरण लिए हो ! सामूहिक एमडीएम अथवा विद्यालयीय कैंटीन व्यवस्था बंद हो तथा बच्चों को सुपाच्य और शाकाहारी भोज्य पदार्थ घर से ही सुरक्षित डब्बे में लाये जाने की अनुमति हो । कपड़े नियमित सफाई की गई हो । इतना ही नहीं, शिक्षकों के प्रति शासन/प्रशासन द्वारा अनादर का भाव नहीं हो ! चूँकि उनके भी परिवार होते हैं, एतदर्थ उनके वेतनादि भी नियमित और सम्मानजनक हो ! ऐसी व्यवस्था के बाद ही विद्यालय में पठन-पाठन आरंभ हो, शुभेच्छित सुझाव लिए यही कामना है, शुभकामना है। यह मेरी निजी विचार है, चाहे तो इसे अन्यथा न लेंगे !