कोरे कागज के पन्ने
कोरे कागज के पन्ने,
शेष रह जाते थे,
वर्ष के अंत में,
करते थे उन पर पूर्व अभ्यास,
लिख लिख कर कलम से,
अगली कक्षा में प्रवेश लेते ही,
जब तक आती न थी,
नई पुस्तक – पुस्तिकाये।
कोरे कागज के पन्ने,
तंगी के बोझ को लेता था सम्हाल,
उपयोग भली भांति से होते,
शिक्षा के अक्षर थे सजते,
तौलते न थे तराजू में,
चन्द पैसो के खातिर,
दे देते थे जरुरत मंद ,
उन पढ़ने वालों को ।
कोरे कागज के पन्ने,
नहीं जाते थे बेकार ,
अहमियत देते थे भरपूर,
हृदय से करते थे सम्मान,
छोटी छोटी इन बातों से,
रखते थे ध्यान शिक्षा के महत्त्व को,
कहीं महंगी हो न जाए,
शिक्षा भविष्य में।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।