कोरा भात !!
ये बात मैं दिसंबर की एक सर्द सुबह की कर रहा हूं। सड़क की मरम्मत का काम चल रहा है। कुछ लोग आजीविका के लिए सीमेंट का गारा एक जगह से दूसरी जगह अपने सर पर ढो रहे हैं। उनमें कुछ स्त्रियां भी हैं जिनपर अतिरिक्त बोझ है सड़क के किनारे सुलाए हुए बच्चों का। जो एक चुनरी से ढके हुए गहरी नींद में हैै।उन्हें वो बीच बीच में आकर थपथपा रही हैं। सड़क सीमेंट गारे की धूल ने उड़ कर सोते हुए बच्चों के ऊपर एक और धूल की परतनुमा चादर बना डाली है।
मैं पास ही बैठे एक दर्जी के पास तुरपाई के लिए गया था
ये सब तकरीबन आधा घंटे तक देखता रहा। कुछ देर बाद अपनी पोटली से उन औरतों ने कुछ बर्तन निकालकर परोस दिया अपने बच्चों को
कोरा भात!!
बच्चे उसे किसी स्वादिष्ठ पकवान की तरह खाने लगे। वो एक एक निवाला स्वाद लेकर खा रहे थे। उनमें से एक सबसे छोटा बच्चा तो छीन कर खाने का भी प्रयास कर रहा था, जैसे कोई मेवा मिष्ठान हो। ये देखकर आंखें इतनी भर आयी कि दिखना बंद हो गया। दिल इतना गदगद हुआ कि मैं निशब्द हो गया। मैं ये देखकर टूटता चला गया भीतर से। मेरे कपड़ों की तुरपाई तो हो गई कुछ पैसों में किन्तु भीतर कहीं कुछ उधड़ता चला गया।
हम जहां खाने में पसंद नापसंद रखते हैं वहीं हमारे आस पास के कई लोगों को ज़िंदा रखता है
कोरा भात!!
– विवेक जोशी ”जोश”