*कोयल की कूक (बाल कविता)*
कोयल की कूक (बाल कविता)
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सुबह-सुबह जब आज सुना
कोयल को हमने गाते,
वाह-वाह क्या झूम-झूमकर
गाती थी मस्ताते
हमने पूछा “फागुन में ही
बतलाओ क्यों गातीं,
इन्हीं दिनों क्यों मधुर-मधुर
अपनी आवाज सुनातीं ?”
कोयल बोली “हम कोई
पेशेवर नहीं गवैए,
हम गाते हैं नहीं इसलिए
मिलते हमें रूपैए
हम मन के मौजी हैं
जब मन में होगा गाएँगे,
भीतर से संगीत फूटता
तब ही सुनवाएँगे।”
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451