कोमल चितवन
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
खिलखिलाता कोमल सा मुखड़ा
सुंदर और मासूम सा चेहरा
कोमल पौध टहनी से कर
और पत्ति से नाजुक करतल
प्रफुल्लता से परिपूर्ण हृदय स्थल
मस्ती से उछल कूदता बचपन।
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
ऊँच-नीच का ज्ञान ना रखता
ना छूने से किसी को डरता
अपनी सुंदर प्यारी चेस्टा से
सभी को समान खुशियाँ देता
सबका मन बहलाता रहता
बिना भेदभाव वह उपवन।
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
क्या करना है पता नहीं बस
जहाँ रमता है वही रम जाता
कहाँ जाना है पता नहीं बस
जो मन भाता वहीं दौड़ जाता
पल पल लक्ष्य बदलता रहता
धूम मचाता वह बचपन।
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
खेल- खेल में रुठना मानना
कभी उछल जाता खुशी भर
हवा-सी फुर्ती ले आता जाता
कभी यहाँ तो कभी वहाँ पर
सहस्त्र खग – सा क्रंदन कर
चहकता रहता वह उपवन।
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
न अतीत की कोई यादें है
न भविष्य की कोई चिंता है
न कर्म का कोई भार है
न अकर्म का कोई वार है
अपनी बाल लीलाओं से
सबको हर्षाता वह बचपन।
चंचलता से आच्छादित वह जीवन
रंग बिरंगे फूलों सा कोमल चितवन।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’