कोन समझाये
कोन समझाये इस जवानी को
शर्म आयेगी खानदानी को
गर सँभल तुम सके न देख कर
वक्त छोड़ेगा तब निशानी को
देश की देखरेख कैसे हो
जब डसे साँप राजधानी को
आज कोई नया न अपनाये
लोग अजमा रहे पुरानी को
डूब जाओगे गीत में मेरे
जब कभी तुम सुनो रवानी को
डॉ मधु त्रिवेदी