कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं
स्वयं से विद्रोह होना
बाहर हँसना अंदर रोना
प्रेम के धागों से यूँ उलझना
अपनी ही कल्पना में खोना
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं
इश्क़ में जलकर कुन्दन होना
मन को मथ कर मक्खन होना
बच्चों जैसा क्रन्दन रोना
ऋषियों जैसा चिंतन होना
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं
जुनून और जज़्बात संग पिरोना
दूजे के दुःख में तन्हा रोना
याद में उसकी सुदबुध खोना
डूबती नाव अकेले खेना
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं
मैं प्यार के दरिया में तैरूँ
और तुम उसी में डूब जाओ
ढूँढते ढूँढते मैं थक जाऊँ
फिर मुस्कुराते तुम्हें किनारे पाऊँ
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं है
मैं इश्क़ के मल्हार गाऊँ
तुम त्याग की मुरली बजाओ
मैं तुम्हें अंततः जीत जाऊँ
और तुम स्वतः हार जाओ
कोई स्वाभाविक स्थिति नहीं है
यतीश ११/१/२०१८