कोई सूरज-सा है…
जिंदगी की भागदौड़ –
हताशा –
और अस्तित्व को निगलती बेचैनी ;
यूँँ तो बहुत हैं जीवन में ,
अपने-पराये
गुफ्तगूं में जिनसे –
दिन पर दिन ,
माह पर माह
बीतते जाते हैं –
फिर भी ,
हृदय रह जाता है
अतृप्त और कुंठित ;
पर , शुक्र है
विचारों के धुँधलके में –
कोई सूरज-सा है ;
निस्वार्थ प्रेम की किरणों से –
थके हारे मन में ,
उमंग और ऊर्जा
का संचार करता है…।
(मोहिनी तिवारी)