कोई शाम गुजारूँ तुम्हारे साथ,
कोई शाम गुजारूँ तुम्हारे साथ, हसरत ही बन गयी है कुछ दिनों से, जो इच्छा है मेरी,
व्यस्तताओं का रोना दोनों तरफ है, तुम्हारी तरफ भी हमारी तरफ भी
मिल ना पता वक्त इक दूजे से मिलने का, मेरी सुबह व्यस्तताओं भरी, तो तुम्हारी शाम उलझी पड़ी
इक चाय का कप जो करता रहता इंतज़ार मेरा-तुम्हारा
सुबह साँझ भी साथ है मिलते, इक निश्चित समय, एक निश्चित जगह
पर हमारी घड़ी ना मिल पाती, एक साथ एक जगह
हसरत ही बन गयी है, कोई शाम गुजारूँ तुम्हारे साथ……