कोई विरला ही बुद्ध बनता है
आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर सभी को बधाईयां एवं। शुभकामनाएं।आज मन में विचार आया की आज से 2500 वर्ष पूर्व एक युवक के मन में कुछ दृश्यों को देख कर उसका मन उद्विग्न हो गया और उसने जन्म, मृत्यु, जरा ,व्याधि के दुःख से निवृत्त होने हेतु प्रयास आरंभ कर दिए और सत्य की खोज तक रुका नहीं ।अंततः ज्ञान प्राप्त कर लौटा।और महात्मा बुद्ध बना जिनकी शरण में कइयों ने शांति एवं सत्य को प्राप्त किया।
2500 वर्ष बीत चुके है और हम सब भी वही दृश्य जों राजकुमार सिद्धार्थ ने देखे लगभग रोजाना ही देखते है।समाचार पत्र में पढ़ते है, टीवी पर न्यूज में देखते है।संसार में सभी जन्म मृत्यु जरा व्याधि से पीड़ित है बार बार जन्म ले लेकर आ रहे है परंतु किसी के मन में मनुष्य बनने पर भी विचार नही आता की इन दु:खो से निवृत्ति हो सकती है।
और दु:खो की निवृत्ति में विज्ञान और चिकित्सा संबंधी इतनी तरक्की के बाद भी क्या मनुष्य दु:खो से बच पाया ?क्या किसी को वृद्ध होने से या रोगी होने से या मृत्यु से विज्ञान बचा पाया?
इसका अर्थ यही है की विज्ञान के पास इसका समाधान है नही, वो ढूंढ रहा है।
कोई विरला ही महात्मा बुद्ध जैसा सत्य की खोज में निकलता है।अन्यथा हम तुम जैसे तो यही सोचते है की जीवन खत्म होने वाला है इसे अच्छे से भोग लेना चाहिए।
परिस्थिति वही है महात्मा बुद्ध ने जन्म, मृत्यु ,जरा व्याधि को देखा तो उन्होंने यह सीखा की सब दु:ख पाते है मृत्यु को प्राप्त होते है तो क्या कोई ऐसा जीवन है जो नष्ट ना हो ,जिसमे दु:ख ना हो, अविनाशी हो।वो दु:ख के पीछे का कारण और उसके निवारण को ढूंढने में लग गए।
और एक हमारी सोच जिन्होंने दुख होने के बाद भी खोज आरंभ नही की और विषयों को और भोगने में लग गए ।जीवन नष्ट ना हो उसके पूर्व सारे भोग भोग लूं।हमने विषयों को नही भोगा बल्कि विषय हमे भोग रहे है और अंततः खाली हाथ लौट जाएंगे और पुनः बंधन में बंधे रहेंगे।जन्म – मृत्यु के चक्कर में पड़े रहेंगे।
सत्य ही है कोई विरला ही बुद्ध बनता है ।
©ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद(मध्यप्रदेश)