कोई यहाँ कबीर
समझेगा जबतक नहीं, दिल यह गहरी पीर !
तब तक मुश्किल है बने,…कोई यहाँ कबीर !!
कहीं फाड़कर बदलियाँ, कहीं थोपकर बाढ़ !
जाते जाते दे गया,… …कितने घाव अषाढ !!
रमेश शर्मा.
समझेगा जबतक नहीं, दिल यह गहरी पीर !
तब तक मुश्किल है बने,…कोई यहाँ कबीर !!
कहीं फाड़कर बदलियाँ, कहीं थोपकर बाढ़ !
जाते जाते दे गया,… …कितने घाव अषाढ !!
रमेश शर्मा.