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3 Feb 2024 · 1 min read

कोई मुरव्वत नहीं

सपने जो डराते हैं
उन्हें टूटने दो
रिश्ते जो सताते हैं
उन्हें छूटने दो ,

बेवजह जो उलझते हैं
उन्हें कटने दो
नाहक जो अकड़ते हैं
उन्हें लचकने दो ,

झूठ जो बोलते हैं
उन्हें लजाने दो ,
कर्म जो बुरे करते हैं
उन्हें भोगने दो ,

अपनों की उन्नति से जो सुलगते हैं
उन्हें भभकने दो
चेहरे पर झूठ का रंग जो लीपते हैं
उन्हें धुलने दो ,

कीमत जो ईमान की लगाते हैं
उन्हें कंगाल रहने दो ,
ज़मीर जो अपना बेचते हैं
उन्हें ज़लालत झेलने दो ,

करीबी जो प्रेम का अभिनय रचते हैं
उन्हें बेपर्दा होने दो
ज़िम्मेदारियों को जो भार समझते हैं
उन्हें दोहरा हो जाने दो ,

एहसान फरामोश जो देशद्रोह करते हैं
उन्हें सज़ा मिलने दो
दो मुंहे साॅंप जो आस्तीन में पलते हैं
उन्हें हर बार मरने दो ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )

2 Likes · 2 Comments · 138 Views
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