कोई मुरव्वत नहीं
सपने जो डराते हैं
उन्हें टूटने दो
रिश्ते जो सताते हैं
उन्हें छूटने दो ,
बेवजह जो उलझते हैं
उन्हें कटने दो
नाहक जो अकड़ते हैं
उन्हें लचकने दो ,
झूठ जो बोलते हैं
उन्हें लजाने दो ,
कर्म जो बुरे करते हैं
उन्हें भोगने दो ,
अपनों की उन्नति से जो सुलगते हैं
उन्हें भभकने दो
चेहरे पर झूठ का रंग जो लीपते हैं
उन्हें धुलने दो ,
कीमत जो ईमान की लगाते हैं
उन्हें कंगाल रहने दो ,
ज़मीर जो अपना बेचते हैं
उन्हें ज़लालत झेलने दो ,
करीबी जो प्रेम का अभिनय रचते हैं
उन्हें बेपर्दा होने दो
ज़िम्मेदारियों को जो भार समझते हैं
उन्हें दोहरा हो जाने दो ,
एहसान फरामोश जो देशद्रोह करते हैं
उन्हें सज़ा मिलने दो
दो मुंहे साॅंप जो आस्तीन में पलते हैं
उन्हें हर बार मरने दो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )