कोई मदहोश था…
कोई मदहोश था बाहों में कहीं,
दर्द से दिल किसी का तड़पता रहा,
नींद गायब हुई थी किसी की कहीं,
कोई नर्म बिस्तर पे सोता रहा।
कोई खुद को ही खुद ले आग़ोश में,
आंसुओं से ही खुद को भिगोता रहा,
कोई हुस्नो-महफ़िल में शान से,
जाम पर जाम पीता रहा ।
किसी ने किसी से कहा कुछ न था,
वो जाने क्यों फिर भी ख़फा हो गया,
उम्र सारी किसी की थी उसके लिए,
वो जाने क्यों फिर भी बेवफा हो गया।
अब “सुमन” तुम खिलोगे किसके लिए,
जब गुलशन ही सारा वीरां हो गया,
जिन राहों में चैनो-अमन व्याप्त था,
अब फ़िजा में भी मौत का पहरा हो गया।
✍ – सुनील सुमन