कोई भी नही भूख का मज़हब यहाँ होता है
कोई भी नही भूख का मज़हब यहाँ होता है
खाना ही इक भूखे का महज़ रब यहाँ होता है
करले सियासत चाहे ये कितना भी ज़माना
मजलूम कोई इंसा यहाँ इंसान कब होता है
-महेन्द्र नारायण
कोई भी नही भूख का मज़हब यहाँ होता है
खाना ही इक भूखे का महज़ रब यहाँ होता है
करले सियासत चाहे ये कितना भी ज़माना
मजलूम कोई इंसा यहाँ इंसान कब होता है
-महेन्द्र नारायण