कोई बताये हमें
कोई बताये हमें
कभी कोरोना कभी सुनामी , कभी भूकंप से हो रहे रूबरू हम
कभी दंगों की पीड़ा , कभी मजदूरों की पीड़ा से रूबरू हो रहे हम
वक़्त क्यों रूठ गया हमसे, कोई बताये हमें
बहुत कुछ छूट क्यों गया हमसे , कोई बताये हमें
कहीं गिरा दी गयी सरकार, कहीं सरकार गिराने की तैयारी
क्यूं कर मर रहे ये नेता कुर्सी के लिए , कोई बताये हमें
कुछ कटे रेल के नीचे , कुछ कुचले गए सड़कों पर
इंसानियत की ये दुर्दशा क्यूं है , कोई बताये हमें
चौरासी दिन बाद वो नेता निकला अपनी गुफा के बाहर
इन्हें अपनी मौत का इतना डर क्यूं , कोई बताये हमें
किसी ने लूटा किसी ने कूटा , किसी ने नोचा जी भर
मानवता इतनी तार – तार हुई क्यों , कोई बताये हमें
गरीब क्या पैदा होता है सिर्फ मरने के लिए
मानवता के दुश्मन नेताओं को मौत क्यूं नहीं आती, कोई बताये हमें
उनकी पीड़ा उनकी दुर्दशा पर , मेरी कलम ने रोये हज़ारों आंसू
राजनीति के आका नींद से जागते क्यूं नहीं , कोई बताये हमें
किसी ने बताया एक मजदूर का बच्चा मजदूर की छाती से चिपक कर मरा
जिन्दगी की जंग में बच्चे क्यूं हुए निढाल , कोई बताये हमें
वो खुद को कहते हैं 135 करोड़ जनता का खैरख्वाह
इस त्रासदी में बंगले के बाहर इनकी शक्ल नज़र क्यूं नहीं आती, कोई बताये हमें