कोई ना हो जान पहचान में।
आ चले वहां जहां कोई ना हो जान पहचान में।
थोड़ा सा वक्त बिताते हैं साथ किसी शमशान में।।1।।
मैं दुआए बेचता हूँ इस जहान में।
खुदा ने बड़ी शिफा दी है मेरी ज़बान में।।2।।
देखा है ज़िन्दगियों को तड़पते हुए इसमें।
हमको ना पड़ना है इस इश्क के जंजाल में।।3।।
शक ना करना तुम हम पर खुदा के वास्ते।
हमसे यह गलती हुई है सच में अनजान में।।4।।
काफ़िर हो गया है वह जो कलमा नही पड़ता है।
शायद उसका अकीदा हो गया है अब शैतान में।।5।।
कभी दिलसे से सुनना मस्जिद से आती हुई सदा।
बड़ा सुकून मिलेगा तुझे बिलाल की आजान में।।6।।
तुमने ही हमको दी है ये नई ज़िन्दगी दोबारा।
हम हो गए है सर से पांव तक तेरे अहसान में।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ