कोई नही है वास्ता
कोई नहीं है वास्ता,हमारे दरमियां अब।
मिट गया हर रिश्ते का नामोनिशां अब।
हर तरफ छाया है ,अंधेरा और मायूसी
जिंदगी पहले सी है नही दरख्शां अब।
उम्मीद खुदा से मैं क्यों लगा कर बैठी हूं
ज़माने में मिल जायेंगे बहुत मेहरबां अब।
बेवफाई करनी थी तो,कोई इशारा देते
कैसे करें शिकायत दिल की अयां अब।
कितने लोग रोते हुए तन्हा ही मर गये
उदास से रहते हैं ,ये खाली मकां अब।
सुरिंदर कौर