कोई नही किसी का मीत है
कोई नहीं किसी का मीत है
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कोई नहीं किसी का मीत है,
झूठे गाता शेखी के गीत है।
दिखावे का चला ऐसा दौर है,
झूठी चली जगत की रीत है।
कुछ नहीं धरा है मित्र द्वेष में,
मिलता वही हो जैसी नीत है।
झूठ की उम्र है कुछ भी नहीं,
सच्चाई की ही होती जीत है।
मनसीरत अच्छा हो या बुरा,
पल में वक्त जाता व्यतीत है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)