कोई तो डगर मिले।
दिल के अहसास लिख रहा हूं अल्फाजों में।
इन्हें ढाला है मैने अपनी चाहत के सांचों में।।
तुम दूर हो गए हो हमसे, कोई भी गम नही।
कमबख्त रूह बसी है बस तुम्हारी यादों में।।
अपना खुदका अक्स हमको बेगाना सा लगे।
तुमने हर बार यूं दिल तोड़ा है अपने वादों से।।
सच ना है ये वशवशे तेरी मेरी मोहब्बतों के।
हरबार मेरा ही नाम आया झूठी अफवाहों में।।
कोई तो डगर मिले जो जाती हो मंजिल को।
मुझे न पता मैं कहां चल रहा हूं किन राहों पे।।
ऐ काश तुम फिर वापस आ जाते जिंदगी में।
सब गम भूल जाते हम आकर तुम्हारी बाहों में।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ